डिप्रेशन को आधुनिक समाज की बीमारी माना जाता है, क्योंकि जीवन चर्या में बदलाव, प्रतियोगिता का माहौल, सामाजिक माध्यमों का उपयोग, भावनाएं, महत्वाकांक्षाएँ और उम्मीदें हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर हावी हो चुके हैं. जो मनुष्य पहले शिकारियों के रूप में और खाने पीने की चीजें जंगलों में बटोरने में जीवन बिताता था,पिछले लगभग 3000 वर्षों में आज वह अन्न उत्पादक समाज में बदल चुका है.इतना ही नहीं पिछले 200 वर्षों में लगातार हो रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों का इस्तेमाल कर जबर्दस्त औद्योगिक क्रांति भी कर चुका है. सामाजिक व आर्थिक वातावरण तेजी से बदल रहा है,लेकिन लोग उसमें स्वयं को उतनी तेजी से ढाल नहीं पा रहे हैं.जिसके कारण उनमें चिंता,तनाव,और दूसरे मानसिक विकार घर कर रहे हैं.
जीवित प्राणियों में शरीर के अंगों की कार्यशीलता तथा चय उपचय सम्बन्धी सामान्य स्तर को स्वास्थ्य कहते हैं जबकि मनुष्यों में यह शारीरिक, मानसिक या सामाजिक परिवर्तन होने पर आत्मप्रबंधन करते हुए समाज या व्यक्ति को उसमें ढालने की क्षमता है.मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति की वह अवस्था है जिसमें हर व्यक्ति अपनी क्षमता को पहचानता है,जीवन में आम तनावों का सामना कर सकता है तथा उत्पादक और फलदायी कार्य कर सकता है. समाज की उन्नति में योगदान कर सकता है. मानसिक स्वास्थ्य में भावनात्मक,मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक रूप से स्वस्थ्य होना शामिल है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानसिक कार्यो का ठीक बने रहना ही मानसिक स्वास्थ्य है. यह व्यक्ति के सोचने, अहसास(महसूस) करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है.
मानसिक स्वास्थ्य विकार सोचने,भाव,तथा व्यवहार में व्यवधान पैदा करते हैं जो कि आम हैं. लेकिन जब व्यवधान बहुत ज्यादा हो जाता है तो दिनचर्या भी बाधित होने लगती है तथा व्यक्ति में डिप्रेशन पैदा होने लगता है. यह सामजिक जीवन, संबंधों,नौकरी,खुद के उपयोगी होने और जीवन के उद्देश्य को प्रभावित करता है.महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दो गुना ज्यादा डिप्रेशन होता है.
डिप्रेशन के लक्षण:
मन में लगातार चलती रहने वाली उदासी, किसी भी कार्य में मन न लगना. जिस काम में उसको पहले आनंद आता था उसमें रूचि खो देना,पहले की गई किसी गलती के लिए ग्लानि का अहसास होना,खुद को बेकार समझ लेना, भूख तथा नींद बहुत कम या बहुत ज्यादा हो जाना.हर समय थकान और शक्तिहीन महसूस करते रहना, किसी भी काम पर ध्यान केन्द्रित न कर पाना,कोई निर्णय न ले पाना, कम से कम दो हफ्ते तक अपने रोजाना के कार्य भी न कर पाना, बेचैनी बने रहना, आशाहीन हो जाना ये सभी डिप्रेशन के आम लक्षण हैं. इन लक्षणों को समय रहते पहचान कर उपचार लेने से नियंत्रित किया जा सकता है.
लेकिन डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति के मन में जब आत्महत्या का विचार आने लगे तो यह डिप्रेशन के अत्यंत गंभीर हो जाने की सूचना देता है. इस स्थिति में व्यक्ति वास्तविकता से दूर होता है. वह कभी जूनून की हद तक प्रसन्न होता है तो कभी घोर निराशा में डूब जाता है और आत्म हत्या का प्रयास करता है.यह सहायता के लिए उसका संकेत हो सकता है अर्थात वह इस वास्तविकता की ओर लोगों का ध्यान खींचना चाहता है कि वह कितना दुखी और लाचार है. वह मानता है कि आत्म हत्या का प्रयास करने पर अचानक कोई व्यक्ति उसे बचा लेगा.
आत्म हत्या सम्बन्धी प्रवृत्ति होने पर व्यक्ति यह कहकर संकेत करता है कि “वह बहुत हताश और निराश है, ऐसे जीवन से तो मर जाना अच्छा है” या “उसे कोई रास्ता,कोई चारा दिखाई नहीं दे रहा.” ऐसा व्यक्ति कभी कभी बहुत अधिक रोता है,आहें भरता है या फिर अकेलेपन से भयभीत रहता है. वह अपने किसी अंग के काटने का प्रयास कर चुका होता है या नशीली दवा की बहुत ज्यादा मात्रा लेता है.वह अक्सर अपनी भावनाओं के बारे में दूसरों से बात करने से कतराता है. वह अनिद्रा का घोर शिकार हो जाता है. सोशल मीडिया पर भी वह इस प्रकार के संकेत देता है. अचानक समूह चैट के या व्यक्तिगत संदेशों पर प्रतिक्रिया देना बंद कर देता है.
डिप्रेशन के कारण:
डिप्रेशन और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों जुड़े होते हैं. डिप्रेशन के कारण व्यक्ति को मधुमेह तथा हृदयघात (हार्ट अटैक ) हो सकता है. इन दोनों बीमारियों के कारण भी डिप्रेशन पैदा हो सकता है. इसी प्रकार डिप्रेशन के लिए कई अन्य कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे कि शराब का अत्यधिक इस्तेमाल तथा तनाव. पुरुषों की तुलना में महिलाओं को डिप्रेशन अधिक होता है.किशोर किशोरियां, मध्यम आयु वर्ग की महिलाएं, बुजुर्ग, अविवाहित लोग, निम्न आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति के लोग,अपने मूल निवास से हटाए गए (विस्थापित) लोग डिप्रेशन की चपेट में आ सकते हैं.
इनके अलावा डिप्रेशन के कई अन्य कारण भी हो जैसे कि-किसी प्रकार का भेद भाव अथवा ठप्पा लगना (लोगों द्वारा अच्छी दृष्टि से न देखा जाना), हिंसा एवं शारीरिक दुरुपयोग, नागरिक एवं राजनितिक अधिकारों का इस्तेमाल करने में बाधा, मानसिक एवं भावनात्मक अत्याचार व उपेक्षा,शिक्षा, नौकरी एवं व्यवसाय के अवसरों की कमी विशेष रूप से ग्रामीणक्षेत्रों में,समाज में अपनी पूर्ण भागीदारी न मिलना,स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवा के उपयोग में आपातकालीन राहत सेवाओं के उपयोग में बाधा,बढ़ी हुई अक्षमता(असमर्थता) तथा अपरिपक्व मृत्यु आदि.
नशीले पदार्थों का सेवन और डिप्रेशन दोनों में कौन पहले?
संसार के सभी मानव समाजों में नशे का सेवन जीवनचर्या सम्बन्धी एक बड़ी समस्या बन चुका है.जो नशा पहले मनोरंजन के लिए किया जाता था,अब उसे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से बचने के उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है. वास्तविकता से बचने हेतु अस्थाई रूप से इस्तेमाल करने के चक्कर में यह स्थाई हो जाता है और अनेक नई समस्याएं पैदा कर देता है. नशा व्यक्ति को अपनी रोजीरोटी (व्यवसाय) से भी दूर कर देता है. और एक दिन वह दयनीय हालत में उस व्यक्ति को पहुंचा देता है. इतना ही नहीं उसे डिप्रेशन की स्थिति में ला खड़ा करता है.लेकिन बहुत से मामलों में इसका उल्टा भी होता है अर्थात पहले डिप्रेशन होता है और उसके बाद व्यक्ति नशा करने लगता है.