“प्रीत के द्वार पर” पुस्तक के सभी गीत प्रीत के द्वार पर खड़े होकर माथा टेक रहे हैं l जो प्रेम में डूबे हुए व्यक्ति की विभिन्न भावनाओं को सीधे सरल शब्द प्रदान करती है l व्यक्ति जब प्रेम में डूबकर जिस प्रेम रुपी उपवन का आनंद लेता है उस उपवन रुपी “प्रीत के द्वार पर” खड़े होकर लेखक दुर्गेश अवस्थी ‘आँचल’ यह बताना चाहते हैं कि सांसारिक विषमताओं को त्यागकर प्रेम में डूबकर आनंदमयी जीवन कितना सुहाना हो जाता है l
लेखक का जन्म 5 जुलाई, 1977 को काँधी, कानपुर, उत्तर प्रदेश मे हुआ था। उनकी, उनके
साहित्यिक गुरुदेव डॉ. कुँअर बेचैन के प्रति अगाध श्रद्धा है। उन्हें भारत की लगभग 50 संस्थाओं
द्वारा सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनके द्वारा रचित पुस्तकों में ‘मासूम बेटियाँ’ तथा ‘प्रीत के
द्वार पर’, प्रकाश्य कृति 'अंतिम भूमिका' (डॉ कुँअर बेचैन जी को समर्पित) तथा संपादित कृति ‘परों में आसमान’ (डॉ. प्रवीण शुक्ल जी का सन्दर्भ ग्रन्थ) हैं।
अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दी साहित्य और हिन्दी के साहित्यकारों पर उनके विभिन्न
लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वे तीन सौ से अधिक कवि-सम्मेलनों और मुशायरों में काव्य पाठ
एवं विभिन्न साहित्यिक गोष्ठियों एवं सेमिनारों में सहभागिता कर चुके हैं।