शब्दांकुर प्रकाशन

love kumar pranay

Love Kumar ‘Pranay’ PRO

पिता का नाम स्व. श्री रतन लाल अग्रवाल

जन्म तिथि28 जून, 1950

जन्म स्थानचंदौसी (उ. प्र.)

शिक्षाबी.एससी, एम.ए. (अर्थशास्त्र), बी एड.

अभिरुचिलेखन

सम्प्रतिओरियन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स से वरिष्ठ शाखा प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त

परिचय

’लय और लहरें’, ‘एक फूल तुम’, ‘यही सच है प्रणय’, ’पारिजात हूँ मैं’, ’तुम कहो तो सही’ आदि के रचयिता, कवि ग़ज़लकार, गीतकार, गीतिकाकार, मुक्तककार लव कुमार ‘प्रणय’ जी हिंदी एवं उर्दू के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनकी ख्याति मात्र काव्य सर्जक की ही नहीं है, वे मृदुल अभिव्यंजना के अनोखे चितेरे भी हैं। आपकी रचनाएं यथा गीत, गीतिका, ग़ज़ल, मुक्तक, माहिया आदि के अवलोकन से पता चलता है कि ‘प्रणय’ जी का मूल स्वर पारंपरिक है। उनकी रचनाओं में प्रेम है, सामाजिक सरोकार है, प्रतिबद्धता है, चिंतन है, राष्ट्र भक्ति है और भाव-भूमि पर सजी सार्थक कविता का लालित्य भी है। कम शब्दों में बड़ी बात कहने की कला उन्हें भरपूर आती है। उनकी रचनाओं में विषयों की विविधता और शिल्प की कसावट देखते ही बनती है। उनके अब तक सात काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा अनेक साझा संकलन में रचनाएं संकलित व प्रकाशित एवं आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से प्रसारित हैं।
प्रणय जी ने साझा काव्य संकलन ”संकल्प के स्वर” व कई स्मारिकाओं का संपादन भी किया है। प्रणय जी को अनेक सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है कुछ प्रमुख सम्मान- गीतिका विभूषण सम्मान एवं गोपाल सिंह नेपाली मुक्तककार सम्मान (युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, नई दिल्ली), पं रामानुज त्रिपाठी स्मृति गीतिका श्री सम्मान (सुल्तान पुर), मुक्तक रत्न सम्मान (मुक्तक लोक, लखनऊ), कविता लोक- गीतिका सौरभ सम्मान (लखनऊ), काव्य सिन्धु सम्मान (अधूरा मुक्तक, लखनऊ), कुण्डलिनी लोक सारस्वत सम्मान लखनऊ, शिखर श्री सम्मान अलीगढ़ आदि।

प्रकाशित पुस्तकें

ज़िन्दगी मुस्कुराएगी

वीडियो गैलरी

तस्वीरें

लेखन

कभी भी आज़माकर देख लेना
मुझे अपना बनाकर देख लेना
 
अगर तुम प्यार पाना चाहते हो
नज़र अपनी झुकाकर देख लेना
 
अजब सी इक खुशी देती मुहब्बत
किसी से दिल लगाकर देख लेना
 
न कोई जान पायेगा तुम्हारे ग़म
ज़रा आँसू छिपाकर देख लेना
 
दिखाई देंगे सुख ही सुख जहां में
दुखों को बस घटाकर देख लेना
 
कभी जब ग़म के साये घेर लें तो
ग़ज़ल तुम मेरी गाकर देख लेना
 
हमेशा पास पाओगे ‘प्रणय’ को
यकीनन तुम बुलाकर देख लेना
 
(1222 1222 122)
ग़मों से मुहब्बत हुई क्या है
नहीं जानते हम खुशी क्या है
 
कभी तो बताओ हमें आकर
शराफ़त में अपनी कमी क्या है
 
हमें रूप उनका बहुत भाता
हमारे लिए ये परी क्या है
 
अँधेरों में जन्मे – पले हैं जो
उन्हें क्या पता रोशनी क्या है
 
न है पास रोटी न छत सिर पर
ज़रा देख लो मुफ़्लिसी क्या है
 
यही सीखने की ज़रूरत अब
गलत क्या, यहाँ पर सही क्या है
 
तुम्ही से हैश् दुनिया ‘प्रणय’ की ये
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी क्या है
 
(122 122 122 2)

आज बिछुड़े हुए मिलायें हम

बाग खुशियों के फिर लगायें हम

 

भूल से भी इधर उधर की कर

दिल किसी का नहीं दुखायें हम

 

हर तरफ़ ग़म के मेघ छाये हैं

आओ मिलकर इन्हें हटायें हम

 

तम हीतम का जहाँ पे डेरा है

इक दिया तो वहाँ जलायें हम

 

उनकी बस्ती में सिर्फ़ नफ़रत है

प्यार का इक शहर बसायें हम

 

बाद मुद्दत के तुम मिले हमको

क्यों इक प्रेम गीत गायें हम

 

वक़्त कैसा भी आए जीवन में

फर्ज़ सारेप्रणयनिभायें हम

 

(2122 1212 22) 

बिन तुम्हारे न होगा गुज़र
कैसे पूरा ये होगा सफ़र
 
छोड़कर तुम अकेला सनम
जा रहे हो किधर बेख़बर
 
दूर खुशियाँ जहाँ बैठी हैं
चल चलें दौड़कर हम उधर
 
देखते – देखते लड़ गई
उनकी नज़रों से अपनी नज़र
 
मुस्कुराकर जो तुम देख लो
फिर न बस में रहे दिल जिगर
 
जिनको खुद का नहीं है पता
पूछते वह हमारी ख़बर
 
जान देनी वतन के लिए
हम तो आये हैं अब ठानकर
 
राम जाने तुम्हारी यहाँ
अपनी तो कट रही बेफ़िकर
 
ये न सोचा ‘प्रणय’ ने कभी
बात बिगड़ेगी बेबात पर
 
(212 212 212)

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प्रदीप चौहान'दीप'

बहुत बहुत बधाई आदरणीय गुरुदेव💐💐💐

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