शब्दांकुर प्रकाशन

Agnipushp by Hukum Singh ‘Zameer’

ISBN -

Subject -

Genre -

Language -

Edition -

File Size -

Publication Date -

Hours To Read -

Pages -

Total Words -

978-93-85776-80-9

Articles

Nature

Hindi

1st

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April 2021

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340

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ABOUT BOOK

देश और समाज आज ऐसे संक्रांति काल से गुजर रहा है जहां बहुत उथल पुथल है। सामाजिक मर्यादाएं तिरोहित होकर नयी परिभाषाएं आकार ले रही हैं। राष्ट्रधर्म पर राजधर्म हावी हो रहा है, मानवधर्म अपनी स्थिती से च्युत होकर सत्ता लोलुप अवसरवादियों के हाथों में खंड खंड बंट गया और वो उससे अपना मनचाहा हथियार बना रहे हैं। बचपन असुरक्षित, केरीयर की दौड़ में समाप्त किलकारियां, युवा दिशाहीन, वृद्ध निराश, कराहते हुए किसान, मातम मनाते मजदूर, विलाप करते हुए विद्यार्थी, स्त्रीयों के सतीत्व का अस्तित्व अप्रासंगिक और ऐसे में हमारा नेतृत्व बस येन केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होने को आतुर है। जहां न्याय स्वयं कटघरे में खड़ा हो वहां कौन किसका भरोसा करे।गोरक्ष, कबीर, जिद्दू, मानव समाज में किसी कालखंड से चली आ रही आस्था व विश्वास को अपनी वैज्ञानिक सोच से परिमार्जित करते हैं तो व्यवसाय बुद्धि वाले कर्मकांडी समूह के लोग उनके विरोध में उठ खडे होते हैं और अंधानुकरण करने वाले अनपढ लोगों के मानस में गहरे बैठ चुकी मान्यताएं कहीं कहीं तिरोहित होती है लेकिन वे उन कर्मकांडियों के मकडजाल से निकल नहीं पाते। साधन व शक्ति सम्पन्न उस संगठित समूह का विरोध उन्हें वेद विरोधी, अहिंदू, गैर सनातनी और ऐसी ही उपमाओं से विद्रुपित करता है। विचारणीय बात यह है कि जब वर्षा के वेदिक देवता इन्द्र को श्रीकृष्ण नकारते हैं और वन, वृक्ष व पर्वतों को बारिश से वैज्ञानिक आधार पर संबद्ध करते हैं तो वहां इन्द्र को पराजित कर के भी पुनः स्थापित करने का प्रपंच करते हैं।भ्रांतियों के ऐसे ही अनुत्तरित प्रश्न रूपी बादलों से आछादित ये एक मुट्ठी आसमान और कुछ समाधान आपके हाथ में है जो कहीं कहीं अनुभवी नाविकों की तरह संभाले हुए जलपोत की तरह विद्वानों से चर्चा के रूप में है तो कहीं कहीं विचारों के भंवर में भटकती अकेली नौका के रूप में। दोनों ही प्रकार के यानों में आपका स्वागत है, यात्री नहीं भागीदार बनें।

ABOUT AUTHOR

हुकुम जी का जन्म 06 सितंबर 1961 को एक सामान्य मध्यम श्रेणी के परिवार में हुआ जिसके पूर्वजों ने नाथ संप्रदाय में दीक्षित होकर सामंती पृष्ठभूमि को त्याग कर जन सामान्य की तरह जीवन यापन प्रारंभ किया। 1970 के दशक में दसवीं की परीक्षा के लिये सोलह साल की आयु की अर्हता पूरी करने के लिये आप की जन्मतिथि 15 सितंबर 1959 करनी पडी अर्थात आप अपनी उम्र से दो साल बड़े हो गये।लेखन में तो 1972 में इन्होंने तुकबन्दियां शुरू की थी जब आप केवल 8वीं कक्षा के विद्यार्थी थे। हालांकि इसकी नींव 1970 में 5वीं कक्षा में ही पड चुकी थी। निसन्देह आप बचपन की उस मित्र को याद कर रहा हैं जिनसे आप 1970 बाद नहीं मिले लेकिन वो आपकी सर्वकालिक प्रेरणा है। आज नहीं पता कि वो कहां है लेकिन वो हमेंशा आपकी यादों में है और रहेंगे। प्रारंभ में केवल किसी को किसी बात का जवाब देने के लिये काव्यशैली में बहुत हल्की-फुल्की दो या चार पंक्तियां कह देते। अभ्यास होने पर ऐसी ही तुकबन्दियों को सहेजना शुरू किया आपने तारीख तो नहीं लेकिन ये याद है कि कौन सी कविता किस समय और किन परिस्थितियों का परिणाम थी। आप यहां एक बात सभी पाठकगण से निवेदन करना चाहते हैं कि आपकी रूची के अनुरूप ना तो वातावरण मिला और ना मित्रगण। आपकी कविताएं आपके मित्रों के लिये नितान्ततः व्यर्थ और समय की बर्बादी से अधिक कुछ नहीं थी, बहुत बडे कवियों में आपकी पहुंच नहीं थी और मध्यम स्तर के कवि आपकी कविता को आमलोगों की समझ में नहीं आ सकने वाली होकर मंच पर ‘हूट‘ हो जाने वाली कहकर नकार देते थे क्योंकि आपकी कविताओं में उर्दू के क्लिस्ट शब्द, अत्यधिक अलंकारपूर्ण व सांकेतिक शैली और इजाफ़त का प्रयोग बहुत अधिक होने के कारण समझने की गति को मंथर कर देने वाले थे। आपकी मुष्किल ये कि सीधे सरल रूप में कुछ कहना आपको पसंद ही नहीं आता था और आपके लिखे को पढ या सुनकर कोई उसका मतलब समझाने के लिये कहता तो आपको सन्तुष्टी होती।

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