शब्दांकुर प्रकाशन

पुस्तक समीक्षा : बदलियों की छाँव

लेखक : संदीप ‘शजर’
समीक्षाकार : ओमप्रकाश यती

‘बदलियों की छाँव’ संदीप शजर का पहला ग़ज़ल-संग्रह है लेकिन इनका नाम ग़ज़ल की दुनिया के लिए अपरिचित नहीं है क्योंकि सोशल मीडिया, उसके विभिन्न समूहों, साहित्यिक गोष्ठियों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इनकी ग़ज़लें निरंतर पाठकों/श्रोताओं तक पहुँचती रहती हैं. पुस्तक के फ्लैप पर इनके ग़ज़ल- गुरु गोविन्द गुलशन जी की यह टिप्पणी इनकी ग़ज़लों के लिए बिलकुल सटीक है कि “संदीप शजर की ग़ज़ल रवायती पगडंडियों पर सफ़र करती हुई शहर की पथरीली सड़कों पर ग़ामजन होते हुए दिखाई पड़ती है”
संदीप शजर के इस शे’र को उनकी ग़ज़ल-यात्रा से जोड़कर भी देखा जा सकता है :-
मेरी मंजिल ये नहीं ऐसे ठिकाने हैं बहुत
राह में मील के पत्थर अभी आने हैं बहुत
मुल्क के वर्तमान हालात पर अपने तरीक़े से टिप्पणी करता हुआ उनका एक शे’र देखें :-
सवाल ये नहीं ख़ंजर है हाथ में किसके
सवाल ये है इशारा कहाँ से मिलता है
संदीप शजर का कथ्य-क्षेत्र विशाल है जिसमें वे कभी प्रकृति के निकट पहुँच जाते हैं तो कभी समाज की खुरदरी सच्चाइयों से रू ब रू हो जाते हैं. उनके कुछ शे’र द्रष्टव्य हैं :-
मन हुआ उससे गुफ्तगू कर लूँ
जब परिंदे को शाख़ पर देखा

मुझ सा दुनिया में है नहीं कोई
मेरी तारीफ़ है कि ताना है

वक़्त करवट ज़रूर बदलेगा
ख्वाहिशों की चिता जलाएं क्यूँ

कहीं कहीं तो शाइर की कहन इतनी ख़ूबसूरत है कि शे’र अपने आप विशिष्ट हो जाता है :-
फिर पलटकर न कभी आया वो जाने वाला
मैंने जिसके लिए दहलीज़ पे हाँ रक्खी थी

शे’र के दोनों मिसरों में अगर राब्ता न हो तो वो शे’र शे’र नहीं होता, इस बात को कितने सुन्दर तरीक़े से शाइर रखता है :-
दोनों मिसरों में राब्ता था अगर
फिर तो इक शे’र हो गया होगा
सोशल मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म “ फेसबुक” से जुड़ी एक समस्या जिससे सबको आए दिन दो-चार होना पड़ता है, पर उनका एक शे’र देखें :-
रोज़ इनबॉक्स करते हैं मुझको
जो मेरी वाल पर नहीं आते
ज़िंदगी और मौत के दर्शन को लेकर अनेक शे’र कहे गए हैं. इस भाव भूमि पर संदीप शजर का यह शे’र भी क्या ख़ूब बन पड़ा है :-
दिल ओ दिमाग़ से अपने बदन उतार दिया
सो मैंने मौत को मरने से पहले मार दिया
कुल मिलाकर संदीप शजर की ग़ज़लों की भाषा आमफ़हम है. इन ग़ज़लों में बड़बोलापन और नारेबाज़ी नहीं है. ग़ज़लों का शिल्प कसा हुआ है और छंद का अनुशासन बनाए रखते हुए शाइर ने एक से बढ़कर एक अश’आर कहे हैं.
एक-दो त्रुटियों को छोड़ दें तो पुस्तक का मुद्रण बहुत अच्छा है. आवरण सहित पुस्तक का कलेवर आकर्षक है.
“ बदलियों की छाँव’ का स्वागत निश्चित रूप से साहित्य-जगत में होगा, इसके प्रति मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ.
ग़ज़ल-संग्रह – बदलियों की छाँव( पृष्ठ- 80)
ग़ज़लकार – संदीप शजर
प्रकाशक – शब्दांकुर प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य – रूपये 200 हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
ओमप्रकाश यती
एच- 89, बीटा-2, ग्रेटर नोएडा

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