यह है बहरूपिया संन्यासी; इसके यथार्थ और कवि की कल्पना के रंगों के संयोग से बावन रूपों की रचना हुई है! बहरूपिया के सभी बावन रूपों में संतों-संन्यासियों जैसी विरक्ति भावना का पुट है। किसी रूप में वह असिजीवी दिखता है तो किसी रूप में मसिजीवी! बंदूक और क़लम दोनों ही उसकी शाश्वत पहचान हैं; हर रूप में वह एक नया तिलस्म गढ़ता है और फिर एक निर्माेही संन्यासी जैसी कठोरता तथा एक पेशेवर बहरूपिया जैसी निपुणता के साथ नया रूप धारण कर नया तिलस्म गढ़ने लगता है ।
This book has been written from the core of my heart