शब्दांकुर प्रकाशन

Chardiwari se Chaurahe tak by Meenakshi Bhatnagar

ISBN -

Subject -

Genre -

Language -

Edition -

File Size -

Publication Date -

Hours To Read -

Pages -

Total Words -

978-93-85776-91-5

Poetry

Nature

Hindi

1st

16 MB

April 2021

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134

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ABOUT BOOK

देश और समाज आज ऐसे संक्रांति काल से गुजर रहा है जहां बहुत उथल पुथल है। सामाजिक मर्यादाएं तिरोहित होकर नयी परिभाषाएं आकार ले रही हैं। राष्ट्रधर्म पर राजधर्म हावी हो रहा है, मानवधर्म अपनी स्थिती से च्युत होकर सत्ता लोलुप अवसरवादियों के हाथों में खंड खंड बंट गया और वो उससे अपना मनचाहा हथियार बना रहे हैं। बचपन असुरक्षित, केरीयर की दौड़ में समाप्त किलकारियां, युवा दिशाहीन, वृद्ध निराश, कराहते हुए किसान, मातम मनाते मजदूर, विलाप करते हुए विद्यार्थी, स्त्रीयों के सतीत्व का अस्तित्व अप्रासंगिक और ऐसे में हमारा नेतृत्व बस येन केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होने को आतुर है। जहां न्याय स्वयं कटघरे में खड़ा हो वहां कौन किसका भरोसा करे।गोरक्ष, कबीर, जिद्दू, मानव समाज में किसी कालखंड से चली आ रही आस्था व विश्वास को अपनी वैज्ञानिक सोच से परिमार्जित करते हैं तो व्यवसाय बुद्धि वाले कर्मकांडी समूह के लोग उनके विरोध में उठ खडे होते हैं और अंधानुकरण करने वाले अनपढ लोगों के मानस में गहरे बैठ चुकी मान्यताएं कहीं कहीं तिरोहित होती है लेकिन वे उन कर्मकांडियों के मकडजाल से निकल नहीं पाते। साधन व शक्ति सम्पन्न उस संगठित समूह का विरोध उन्हें वेद विरोधी, अहिंदू, गैर सनातनी और ऐसी ही उपमाओं से विद्रुपित करता है। विचारणीय बात यह है कि जब वर्षा के वेदिक देवता इन्द्र को श्रीकृष्ण नकारते हैं और वन, वृक्ष व पर्वतों को बारिश से वैज्ञानिक आधार पर संबद्ध करते हैं तो वहां इन्द्र को पराजित कर के भी पुनः स्थापित करने का प्रपंच करते हैं।भ्रांतियों के ऐसे ही अनुत्तरित प्रश्न रूपी बादलों से आछादित ये एक मुट्ठी आसमान और कुछ समाधान आपके हाथ में है जो कहीं कहीं अनुभवी नाविकों की तरह संभाले हुए जलपोत की तरह विद्वानों से चर्चा के रूप में है तो कहीं कहीं विचारों के भंवर में भटकती अकेली नौका के रूप में। दोनों ही प्रकार के यानों में आपका स्वागत है, यात्री नहीं भागीदार बनें।

ABOUT AUTHOR

प्रकृति की गोद में बसे शहर देहरादून शहर में पली बढ़ी, और विवाहोपरांत दिल्ली की निवासी मीनाक्षी भटनागर यूँ तो शिक्षा के समय से ही साहित्य से गहरा जुड़ाव रखती हैं, किंतु जीवन की व्यस्तताओं में यह शौक सिर्फ पढ़ने तक सिमट कर रह गया था। आपने अपने विद्यालय में समाचार पत्र का सम्पादन भी किया था।रसायन विग्यान में एम एस सी कर के दिल्ली के प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापन किया, और अब अपना पूरा समय लेखन को देती हैं।आप अनेक साहित्यिक मंचों से जुड़ी है, और सम्मानित भी हुई हैं। आपका एकल संग्रह ‘ज़िंदगीनामा- लम्हें कुछ सपने’ प्रकाशित हो चुका है। दूसरा एकल संग्रह ‘चारदिवारी से चौराहे तक’ प्रकाशित होने की राह पर है। इनके साथ आपकी रचनाएं अनेक साझा संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं।

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