शब्दांकुर प्रकाशन

Dr. kunwar bechain PRO –

पिता का नाम – श्री नारायण दास
जन्म तिथि – 1 जुलाई 1942
जन्म स्थान – गांव- उमरी, मुरादाबाद (उ.प्र.)
शिक्षा – एम.कॉम, एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी
अभिरुचि – लेखन व संगीत
सम्प्रति – गीतकार, ग़ज़लकार और चित्रकार

परिचय

डॉ. कुँवर बेचैन का जन्म 1 जुलाई 1942 को, मुरादाबाद के छोटे से गाँव उमरी में हुआ था। श्री नारायण दास और श्रीमती गंगादेवी के घर जन्मे डॉ. कुँवर बेचैन बचपन से ही शब्दों के साथ खेलने लगे थे। शब्द उनके लिए खिलौने थे, जिनसे वे नई-नई दुनिया गढ़ते थे।

शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने एम.कॉम, एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी. जैसी ऊँचाइयाँ छूईं, लेकिन उनकी असली पहचान उन्हें हिंदी साहित्य के क्षेत्र में मिली। वे एक ऐसे कवि थे, जिनकी कविताएँ सीधे दिल को छू लेती थीं। प्रेम, दर्द, खुशी, ग़म, जीवन के हर रंग को उन्होंने अपनी कविताओं में बखूबी पिरोया। उनकी कविताएँ सिर्फ शब्दों का खेल नहीं थीं, बल्कि जीवन का एक दर्पण थीं।

डॉ. बेचैन साहब सिर्फ एक कवि ही नहीं, बल्कि एक गीतकार, ग़ज़लकार और चित्रकार भी थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को अनेक रचनाएँ दीं, जिनमें गीत संग्रह, ग़ज़ल संग्रह, कविता संग्रह, उपन्यास और बहुत कुछ शामिल है। उनकी रचनाएँ सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पढ़ी/सुनी जाती हैं। उन्होंने अनेक देशों की यात्रा की और हर जगह हिंदी साहित्य का झंडा फहराया है। उनकी रचनायें कई विश्वविद्यालय व बोर्ड के पाठ्यक्रमों में भी पढ़ी जाती हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

डॉ. बेचैन साहब ने कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था उनके पाठकों का प्यार। वे अपने पाठकों से बहुत जुड़े हुए थे और उनकी रचनाओं ने लाखों लोगों के दिलों को छुआ है। 29 अप्रैल 2021 को जब डॉ. बेचैन साहब का निधन हुआ, तो हिंदी साहित्य के लिए एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ हमेशा ज़िंदा रहेंगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

प्रकाशित पुस्तकें

सफ़र में हूँ (ताँका-संग्रह)

वीडियो गैलरी

तस्वीरें

लेखन

 

1.

माँ सरस्वती

मैं तो हूँ मूढ़मती

तू वो ज्ञान दे

सबसे मान मिले

ऐसा वरदान दे

2.

 

हमने पूछा

क्या होती है ज़िन्दगी

उसने कहा

अनिश्चित सफर

टेढ़ी-मेढ़ी डगर

3.

 

हमने पूछा

क्या होता है ये ताँका

उसने कहा

इकतीस वर्णों में

आशीर्वाद है माँ का

 

 

4.

हमने पूछा

कैसा हो परिवार

उसने कहा

जहाँ हो मेल-जोल

व आपस में प्यार

5.

हमने पूछा

कैसी चाहिए भाषा

उसने कहा

जो बन जाय ख़ुद

इंसाँ की परिभाषा

6.

हमने पूछा

क्या होती हैं पुस्तकें

उसने कहा

हमारे मस्तिष्क की

नई-नई रौनकें

7.

हमने पूछा

क्या होती है औरत

उसने कहा

नर की ज़िंदगी का

एक शुभ मुहूर्त

8.

हमने पूछा

क्या होते हैं ये वृक्ष

उसने कहा

ये हैं हमारी साँसें

प्राणों के समकक्ष

9.

हमने पूछा

क्या होती हैं ये राहें

उसने कहा

लक्ष्य तक ले जायें

ऐसी दो शुभ बाहें

 

 

10.

हमने पूछा

क्या होती है ये दोस्ती

उसने कहा

पन्ने मोती की आब लिए

हीरे से भी कीमती

11.

हमने पूछा

क्या है ये नफरत

उसने कहा

मन की झोंपड़ी में

आग लगाता ख़त

12.

हमने पूछा

क्या होते हैं माँ-बाप

उसने कहा

ऐसा ही वरदान

जो भस्म करे शाप

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वंदना कुँअर

ऐसे पिता की पुत्री होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है❤️❤️❤️❤️❤️

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