संकलन के गीत एक सुखद आश्चर्य के रूप में सुश्री ‘काव्या’ जी के बहु-आयामी व्यक्तित्व की गवाही देते हैं जो इन गीतों में अपनी सम्पूर्ण परिपक्वता में परिलक्षित हुई है। यह भी विचाराधीन है कि संग्रह में ‘गीत’ हैं, ‘कविताएं’ नहीं जो उन्हें गेय एवं श्रेय दोनों बनाती हैं। संकलन की विशेषता इसमें नये छंदो का विधान तथा काव्यात्मक वितान है, जिनमें गीत, चौपाई, सखी छंद, आंसू छंद, माहिया, ओज, दिग्पाल, गीतिका इत्यादि समाविष्ट हैं। उदाहरणार्थ, ‘गीत की यह , गली है बहुत ही भली’, ‘नैन मूंदे सखी अब तनिक मै थकी’ एवं ‘कृष्ण की बांसुरी झर रही माधुरी’ इत्यादि।