संक्षिप्त परिचय
प्रकृति की गोद में बसे शहर देहरादून में पली-बढ़ी मीनाक्षी भटनागर जी ने रसायन विग्यान में एम एस सी की है और कुछ दशकों तक दिल्ली के प्रतिष्ठित विद्यालय में अध्यापनरत रही हैं। वे अनेक साहित्यिक मंचों से जुड़ी हैं और सम्मानित भी हुई हैं। उनके तीन एकल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- ‘ज़िंदगीनामा कुछ लम्हें-कुछ सपने’, ‘चारदीवारी से चौराहे तक’ और ‘युद्ध प्रेम और जीवन’। उनकी रचनाएं अनेक साझा संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं। उनकी रचनाओं में मानव, समाज प्रकृति और उसकी समस्याओं को बहुत संवेदनशीलता से उकेरा गया है। वे समय-समय पर साहित्यिक मंचो से पुरस्कृत हुईं और अनेक मंचो द्वारा सम्मानित भी हुई हैं। इस ब्लॉग में आप मीनाक्षी भटनागर जी की कुछ प्रतिनिधि रचनाओं का आनंद ले सकते हैं-
लेखन
उजास, प्रकाश, रौशनी
एक ही शब्द के पर्याय
तुम मानते अपने को श्रेष्ठ
मुझे कमतर आँकते
तुम्हारा अस्तित्व
मुझसे ही तो है
दीप की जलती वर्तिका
मुझसे ही तो प्राण पाती
उजाले में जल
क्या व्यक्त कर पाती स्वयं को…
अँधेरी रात में ही
चाँद फैलाता उजास
अँधकार सागर से तैर
सूर्य सर उठाता
ये चमकते हीरक कण से सितारे
अँधेरे की चादर पर ही तो
वजूद पाते
मेरे बिना
क्या व्यक्त कर पाते स्वयं को….
माँ की अँधेरी कोख में
जीवन की पहली नड़कन
जन्म पाती
मैं तुम्हारा पर्याय नहीं
विलोम भी नहीं
एक दूसरे के पूरक हैं हम
धरा पर हम दोनों का अस्तित्व
है एक साथ,
एक के बाद एक
भोर और रात्रि का क्रम ही तो है
जीवन का आधार
जीवन का आधार…
कितना दुर्गम निर्जन पथ हो,आगे बढ़ताजाऊँगा।
अपने पैरों के छालों को, खुद सहलाता जाऊंगा।
जीवन की जब राह कठिन हो,
और सशक्त अवरोध खड़ा हो,
डराती कौंधती बिजलियाँ ,
मेघ भी जब गहरा घिरा हो,
ठोकर खा खा संभलूँगा ,गिर गिर बढ पाऊँगा ।
अपने पैरों के छाले को ,खुद सहलाता जाऊँगा ।।
रचूँ मैं जीत की परिभाषा ,
सीख लूँ बस प्रेम की भाषा,
उम्मीद के रंगों की तितलियां-
यूँ द्वार से झांकेगी आशा,
अँधियारों में चमके जुगनू, हिम्मत खूब बढाऊँगा।
अपने ही पैरों के छाले, खुद सहलाता जाऊँगा ।।
बिखरे हुए स्वर अनुराग के,
या भड़कते शोले आग के,
जन्म लेंगी नई कहानियाँ-
खिला दूंगा फूल हर बाग के,
आंधी तूफानों की आहट हो, फिर भी धनक सजा लूँगा।
अपने ही पैरों के छालों को, खुद सहलाता जाऊँगा।।
आशाओं की बगिया सूखे
नैनो से बहता नीर रहे
आज हटा देंगे अंधियारा
फैले जीवन में उजियारा
अपनी ढूंढी एक डगर हूँ
मन सागर से उठी लहर हूँ
गली-गली बसंत महकेगा
चंचल कलियां भँवरे गाएंगे
सच्चा जीवन पर्व मनेगा
मन का सुंदर भाव सजेगा
अपने गीतों की एक बहर हूँ
मन सागर से उठी लहर हूँ
सुंदर स्वागत गान सजेगा
नवल सा इक विहान रचेगा
हर पल मन में राग बजेगा
हाथों में रौशन चिराग रहेगा
अपनी ढूंढी एक सहर हूँ
मन सागर की उठी लहर हूँ
मेरे कल्पन लोक में, संसार का यह रूप है
मिटे सरहदे नफरतो की
प्यार का संसार हो
ईर्ष्या द्वेष नफरतों की
चले नहीं ऑधिया
बस चलती प्रीत की
मधुर सी बयार हो
मेरी कल्पना लोक में, संसार का यह रूप है।
नर नारी पाए सम्मान
और बराबर का दर्जा
शोषक शोषित का बचे
नहीं कोई इतिहास हो
वर्ग भेद को छोड़ कर
पाएं सब सम्मान
मेरे कल्पना लोक में ,संसार का यह रूप है
नदिया पावन निर्मल धार
हरियाली का गीत हो
विकास तकनीकी के संग
प्रकृति का मधुर संगीत हो
भावी पीढ़ी के लिए
जग बने एक वरदान
मेरी कल्पना लोक में , संसार का यह रूप है
कल कल नदियों की धार लिए
पर्वत श्रृंखलाओं का भार लिए
न जीत लिए न हार लिए
कर्तव्यों की राह चला करती हूं
फिर भी सबकी झोली भरती हूँ
जाने कितने सुख दुख सहती हूँ
इक प्यास लिए मन में चलती हूँ
इतने सागर नदियों में बहती हूँ
अंतर में आग लिए जलती हूँ
फिर भी सबकी झोली भरती हूँ
कण-कण में बिखरा मरुस्थल
शस्य श्यामला हुई कहीं पर
हिम में कहीं दबी प्रतिपल
विविध रंग-रूपों में ढला करती हूँ
फिर भी सबकी झोली भरती हूँ
कभी किसी के लालच का फल
कहीं शक्ति प्रदर्शन का छल बल
प्रदूषण से वह भारी पल
कभी कहीं बेमौत मरा करती हूँ
फिर भी सबकी झोली भरती हूँ
हर पल लिखता रहा
जीवन पटल पर एक कविता
शरारतों में घुली
नटखट बचपन की धुरी सी
धूप की लेखनी से लिख दी
सुनहरी भोर सी कविता !
यौवन के मादक रंग लिए
मेहंदी की गंध लिए
प्रीत की तूलिका से
सावन भादो की
बरसात सी कविता !
शाम की उदासी ने
डूबते सूरज की
चित्रकारी से
सागर की लहरों पर
स्वर्णिम किरणों से रची
कापते प्रतिबिंब सी कविता !
चाँदनी रात में
झील के वक्ष पर
चाँद ने सर टिका दिया
और उजालों से लिख दी
एक चंदीली कविता!
मै गीत उजालों के रचता,
तू छंद उड़ानों के भरता,
तू भी माटी मैं भी माटी,
हम दोनों की इक परिपाटी,
अंत सभी का निश्चित जान।
हम दोनों का यही विधान।।
मैं जलकर करता हूं वंदन,
तू रचे ज्ञान का वन नंदन,
तेल वर्तिका जीवन बाती,
दोनों लिखते उजली पाती,
जीवन में यूं मिला वरदान।
हम दोनों का यही विधान।।
मेरा जीवन है दो पल का,
तेरा भी है चंद पलों का,
फिर भी बना रहे उल्लास,
इस पल में रच ले इतिहास,
अपने जीवन की आन बान।
हम दोनों का यही विधान।।