तेज तर्रार हैंडसम मोहन पाकिस्तानी हिन्दू था और बला की खूबसूरत जेबुन्निसा हिंदुस्तानी मुस्लिम। कैम्ब्रिज कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते दोनों को एक-दूसरे से प्रेम हो गया। वहीं दोनों ने लंदन की बड़ी कम्पनी में नौकरी करते-करते एक दिन विवाह करने की ठान ली। दोनों के घरवालों उनका फैसला सुनकर बिफर गये। आखिर में बच्चों की जिद के सामने दोनों परिवार विवश हो गए। मोहन के पिता सनातनी रीति से तो जेबुन्निसा के पिता शरीयत के मुताबिक उनकी शादी चाहते थे।
खैर, समझाने पर मोहन के पिता ने शरीयत के अनुसार निकाह की बात मान ली। किन्तु इस बात पर अड़ गये कि लड़की शादी के बाद पाकिस्तान में आकर हिन्दू रिवाज से शादी दुबारा करेगी। इसपर जेबुन्निसा का बाप बिगड़ गया कि वह अपनी लड़की को काफिर नहीं होने देगा। उसने बड़े लाड़-प्यार से इस्लामी तौर-तरीकों से बेटी जेबुन्निसा को पाला था। उन्हें पाकिस्तान के सियासी और समाजी हालात भी पसंद नहीं थे। अक्सर वहां मस्जिदों और हिंदुओं के पूजाघरों में बम धमाके दिल को दहला देते हैं। उसे यह सब कतई मंजूर नहीं था। जब जेबुन्निसा का बाप मोहन के बाप को पाकिस्तान के हालात की याद दिलाता तो मोहन के पिता गुजरात और उत्तरप्रदेश के दंगों की सुना देते। वे हिन्दू धर्म की महानता के गुणगान करते। इस तरह रस्साकशी चलती रही। उन दोनों के बाप अपनी जिद से टस से मस होने को तैयार नहीं थे।
इन हालातों से आजिज़ आकर उन्होंने लंदन की कोर्ट में सिविल मैरिज कर ली। उन्होने टेम्स नदी के निकट एक बंगला भी खरीद लिया था जेबुन्निसा इस्लाम मानती रही तो मोहन हिन्दू धर्म पर चलता रहा। ईद और दीवाली एक साथ वे मनाते। उनके घर में गीता और कुरान पास-पास रखी रहती, मगर कभी कोई तकरार या तकरीर नहीं थी। मोहन के पिता ने उसके बेटे का नाम मोहनिशा रखा। एक साल बाद दोनों ने अपने- अपने माँ-बाप को शादी के बारे में बताया इस खबर के साथ कि अपने पोते या नवासे को आशीर्वाद, दुआ देने पधारे। एयर टिकेट, कार्ड के साथ ही भेज दिए। कहावत है कि मूलधन से ब्याज अधिक प्यारा होता है। दोनों परिवार दौड़े चले आए, जैसे इस अवसर का इंतज़ार ही कर रहे हों।
जेबुन्निसा के पिता ने लंदन से मोहनिशा के मुंडन के बालों को एक पोटली में बांधकर बैल के गोबर में लपेटकर गांव के तालाब के पास दबा देने के लिये भारत भिजवा दिया। उस दिन दोनों परिवारों को लगा कि जैसे घर के सामने बहती टेम्स की जलधारा उनके पूर्वाग्रह भी बहा ले जा रही हो।
रामकिशोर उपाध्याय
लघु कथा को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
धन्यवाद रामकिशोर जी, क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम, हम सबसे पहले एक इंसान है।