शब्दांकुर प्रकाशन

लघुकथा – व्यवहार

एक ग्राम मुख्य मार्ग पर बसा था। मुख्य मार्ग के बीच में ही ग्राम के बीच एक बूढ़ा अपनी झोपड़ी में रहता था। उसने झोपड़ी के आसपास फूलों के पौधे तथा छायादार वृक्ष भी रोपित किए हुए थे। मुख्य मार्ग से गुजरने वाले यात्री बूढ़े की झोपड़ी के पास कुछ देर रुककर प्रकृति के सौंदर्य का आनन्द लेते थे।

एक दिन एक घुड़सवार झोपड़ी के पास आकर रुका। उसने शीतल जल पिया कुछ देर आराम किया फिर बूढ़े से पूछा- ‘बाबा! मैं इस ग्राम में बसना चाहता हूँ। कृपया बताएँ इस ग्राम के लोग कैसे हैं ?’

बूढ़ा बोला- ‘बेटे! जिस ग्राम से तुम आ रहे हो उस ग्राम के लोग कैसे थे ?’

घुड़सवार ने कहा- ‘बाबा! उस ग्राम के लोग बहुत बुरे थे, उन्हीं के कारण मुझे यह ग्राम छोड़ना पड़ा।’

बूढ़े ने घुड़सवार को समझाया- ‘बेटे! इस ग्राम के लोग तो उस ग्राम के लोगों से भी बुरे हैं, जिसे तुम छोड़कर आ रहे हो। तभी तो मैं ग्राम से बाहर रहता हूँ।’

बूढ़े की बात सुनकर घुड़सवार आगे चला गया।

थोड़ी देर बाद झोपड़ी के पास एक बैलगाड़ी आकर रुकी। गाड़ी में एक भरा-पूरा परिवार सवार था। गाड़ीवान ने बूढ़े से पूछा- ‘बाबा! हम इस ग्राम में बसना चाहते हैं। कृप्या बताएँ इस ग्राम के लोग कैसे हैं ?’

बूढ़े ने फिर वही प्रश्न किया- ‘भैया! जिस ग्राम को आप लोग छोड़कर आ रहे हो उस ग्राम के लोग कैसे थे?’

गाड़ीवान भारी मन से बोला- ‘बाबा! वह ग्राम तो स्वर्ग था, वहाँ के लोग देवता थे। नदी की बाढ़ ने ग्राम को बरबाद कर दिया। यदि कुछ दिन में स्थिति सामान्य हो गई तो हमारा परिवार उसी ग्राम में रहना पसंद करेगा।’

बूढ़े ने गाड़ीवान को गले लगाया और सम्मान पूर्वक बोला- ‘इस ग्राम के लोग तुम्हारे ग्राम के लोगों से भी अच्छे हैं। यहाँ तुम्हें और भी अधिक सम्मान मिलेगा।’

एक अन्य व्यक्ति बूढ़े की बातें सुन रहा था। उसने बूढ़े से पूछा- ‘बाबा! घुड़सवार को आपने इस ग्राम के लोगों को बहुत बुरा बताया जबकि गाड़ीवान को इस ग्राम के लोगों के बारे में अच्छा बताया। ऐसा क्यों?’

बूढ़ा बोला- ‘बेटे! अच्छा आदमी अपने आसपास के वातावरण को अपने व्यवहार से अच्छा बनाता है जबकि बुरा व झगड़ालू प्रवृति का आदमी अपने आसपास के परिवेश को खराब करता है। समाज अच्छे के लिए अच्छा है और बुरे के लिए बुरा है, सबकुछ दूसरों के प्रति व्यवहार पर ही निर्भर है।’

मुमताज़ सादिक़

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