सम्पादक : अजय ‘अज्ञात’
समीक्षाकार : रौशन सिद्दीक़ी ‘रौशन’
मोहतरम जनाब अजय अज्ञात साहब के किए गए वादे के मुताबिक़ उनके ज़रिए शाया किरदा परवाज़-ए-ग़ज़ल 5 की किताब सभी ग़ज़लगो को उनके घरों पर बरवक़्त मौसूल हुयी । वादे पर क़ायम और उनकी ज़बान के पुख़्तगी के लिए जनाब अज्ञात साहब मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं । अल्लाह उन्हें सलामत रक्खे।
हर इक ज़ाविए से देखा तो मालूम हुआ की किताब का मेयार बहुत आला दर्जे का है । पेज कवर अपने सभी ग़ज़लगो के कलामों की नुमाइंदगी करते हुए संजीदगी से लबरेज़ है कि देखते ही पढ़ने को जी चाहता है । सभी ज़ाविए से ख़र्च के बोझ को मद्देनज़र रखते हुए अज्ञात साहब ने इस किताब की क़ीमत भी मुनासिब रुपये 150/- रखी, जोकि वाजिब मालूम होती है ।
एक किताब में इतने ग़ज़लगो के कलामों को पढ़ना गोया आँखों को बीनाई बख़्शना सा लगता है। कुल 23 ग़ज़लगो की तहरीरों को पढ़ा तो लगा सभी एक से बढ़ कर एक साबित हुए। बस यूँ कहिए की रूह में लुत्फ़ की सरगरमियाँ दोबाला हो गयीं ।
यह किताब हर अदबी ज़ाविए के ऐतबार से भी काफ़ी उम्दा है। किताब के आखिर में सभी ग़ज़लगो की रंगीन तस्वीरें किताब को और भी ज़्यादा पूरकशिश करती नज़र आतीं हैं। मेरी राय में इस किताब को उर्दू रस्मुलख़त में भी एक साथ शाया किया जाए तो दोनों ज़ुबान जानने वाले इसका भरपूर लुत्फ़ उठा सकेंगे। सभी गज़लगो के कलाम ज़्यादा से ज़्यादा क़ारईंन की नज़रों से गुजरेंगे।
यूँ तो पूरी किताब में सभी अशआर क़ाबिले सताइश हैं पर मुंदर्जाज़ील चंद अशआर से मैं कुछ ज़्यादा मुतास्सिर हुई।
ज़िंदगी की कशमकश में कुछ सुकूँ की चाह में ।
छोड़ आया हूँ मैं ख़ुद को दूर पीछे राह में ॥
अजय “अज्ञात”
रोशन हुआ दयार मेरे दिल का यक-ब-यक ।
यादों के कुछ चराग़ जब आंखो में जल पड़े॥
मधु “मधुबन”
बिछड़ के मुझसे जो तेरी निगाह पुरनम है।
मेरे लिए तेरा हर अश्क आबे ज़मज़म है ॥
पंकज अभिराज
ये तो अब जीने का सामान भी ले जाएगी
मेरी तन्हाई मेरी जान भी ले जाएगी
छाया शुक्ला
शर्म की सदियों पुरानी बेड़ियां खुलने लगीं।
सामने माँ-बाप के अब बेटियाँ खुलने लगीं ॥
सुशील “साहिल”
मुझको मिले हैं ज़ख़्म बहुत फिर भी दोस्तों।
सुनता हूँ दिल की ज़ेहन से कब सोचता हूँ मैं ॥
कुलदीप गर्ग “तरुण”
मेरे कलाम को भी इस किताब के गोशे में जगह मिली जिससे मैं खुश और मुतमइन हूँ ।अल्लाह अज्ञात साहब के हौसलों को बुलंद करे और परवाज़े-ए-ग़ज़ल 5 की ख़ातिर ख़्वाह पाज़ीराई भी हो। आमीन
रौशन सिद्दीक़ी ‘रौशन’
मुंबई