शब्दांकुर प्रकाशन

Pradip Khandwalla

Pradip Khandwalla PRO

प्रदीप खाँड़वाला

परिचय

कवि प्रदीप खाँड़वाला एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं, जिन्होंने प्रबंधन (मैनेजमेंट) और साहित्य, विशेष रूप से कविता, में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे एक कुशल प्राध्यापक, शोधकर्ता, कवि, अनुवादक और सांस्कृतिक विचारक रहे हैं। उनका जीवन शिक्षण, शोध, लेखन और अनुवाद कार्यों में समर्पित रहा है।

शिक्षा एवं पेशेवर जीवन
प्रदीप खाँड़वाला ने अपनी शिक्षा वाणिज्य और प्रबंधन के क्षेत्र में पूरी की। उन्होंने भारत में चार्टर्ड अकाउंटेंसी (सी.ए.) की उपाधि प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए, जहाँ से उन्होंने एम.बी.ए. और पीएच.डी. की डिग्री हासिल की।

उन्होंने कनाडा में छह वर्षों तक प्रबंधन विषय का अध्यापन किया और अपने शोध कार्य के लिए प्रतिष्ठित ब्रोफमैन अवॉर्ड से सम्मानित हुए। वर्ष 1975 में, वे अपने परिवार के साथ भारत लौटे और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM) अहमदाबाद में प्राध्यापक के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने वहाँ 27 वर्षों तक अध्यापन किया और इस दौरान वे चेयर प्रोफेसर और नियामक (डायरेक्टर) के पदों पर भी आसीन रहे। वर्ष 2002 में वे इस पद से सेवानिवृत्त हुए।

उनकी शिक्षण और शोध क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए उन्हें दो लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और दो नेशनल अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस से सम्मानित किया गया। उन्होंने प्रबंधन और सृजनात्मकता पर आधारित चार शोध-प्रेरित पुस्तकें भी लिखीं।

साहित्यिक योगदान
प्रदीप खाँड़वाला का साहित्य के प्रति गहरा लगाव रहा है, विशेष रूप से कविता और अनुवाद साहित्य में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। वे सृजनात्मकता और संस्कृति के गंभीर चिंतक भी हैं। उन्होंने समाज में बढ़ती भौतिकवादी प्रवृत्ति और लालच से हो रहे सांस्कृतिक पतन पर चिंतन किया और इस विषय पर लेखन किया। इस विचारधारा को विस्तार देते हुए उन्होंने करीब 30 पुस्तकें लिखीं।

उनकी छह काव्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें चार अंग्रेज़ी भाषा में, एक गुजराती भाषा में, और एक द्विभाषी (अंग्रेज़ी-गुजराती) संग्रह शामिल है। इसके अलावा, वे एक उत्कृष्ट अनुवादक भी हैं। उन्होंने 200 से अधिक अप्रकाशित गुजराती कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। 200 से अधिक बेहतरीन अंग्रेज़ी कविताओं का गुजराती में अनुवाद किया है। जर्मनभाषी महान कवि रिल्के की सुप्रसिद्ध काव्य रचना ‘डुइनो एलेजीस’ का गुजराती अनुवाद किया है। 11वीं-12वीं शताब्दी के कर्नाटक के वीरशैव वचनकारों की कविताओं का गुजराती में अनुवाद किया है। अपनी पत्नी अंजलि खाँड़वाला द्वारा लिखे गए दो गुजराती कहानी-संग्रहों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है।
सम्मान एवं पुरस्कार
प्रदीप खाँड़वाला को उनके साहित्यिक योगदान के लिए गुजराती साहित्य परिषद और गुजरात साहित्य अकादमी से प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

कवि प्रदीप खाँड़वाला एक ऐसे विलक्षण साहित्यकार और शिक्षाविद् हैं, जिन्होंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग शिक्षा, शोध, लेखन और अनुवाद को समर्पित किया। उनके साहित्यिक कार्यों में कविता, अनुवाद और सांस्कृतिक चिंतन को प्रमुख स्थान मिला है। उनकी रचनाएँ और अनुवाद भारतीय साहित्य और संस्कृति को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रकाशित पुस्तकें

वीडियो गैलरी

तस्वीरें

लेखन

 
स्वर्ग में देवों को 
जोश से भरने हेतू 
पेय की तरह मेरा उपयोग ; 
कला के देव को इच्छा हुई  
पृथ्वी के लोगों को कला के लिये 
प्रोत्साहित करने की ; 
मुझे बाल्टी भर कर 
एक पहाड़ी पर ले गये 
और वहाँ मुझे उड़ेल दिया । 
 
उत्साह से छलकता 
दरारों से होकर  
मैं गुफा की छत पर जा पहुंचा । 
 
नीचे गुनगुनाहट सुनाई दीं ; 
एक आदि मानव 
अपने कबीले में उत्सव मनाने
उसके द्वारा चित्रित  
विशाल भेंसे के चित्र पास 
उसका भोग शिकार दरम्यान   
मांग रहा था । 
 
मुझे यह लोभ देख
घृणा हुई ; 
मैं नीचे तो झरा  
मनुष्य पर नहीं 
वरन चित्र पर । 
 
कलाकार तो मटमैली मिट्टी में 
कब का मिल गया 
किन्तु उसकी कला 
गुफा – गुफा में
चित्र – चित्र में
गेंलेरी – गेंलेरी में 
पूरे जगत में फैली ;
मनुष्य की रंग और आकार की समझ बढ़ी 
          परंतु कलाकारों की कृपणता 
कम नहीं हुई हैं  
और न ही घटी है उनकी नश्वरता !
 
*वैज्ञानिकों का मानना है कि आदि मानव शिकार के लिए प्राणी का चित्र बना के उससे प्रार्थना करते कि उसका शिकार सफल रहे जिससे कबीले का पेट भरे । 
 
मृत्यु और जीवन के देव का 
मर्त्य लोक के लिए मैं 
शाश्वत पैगाम था ; 
जीवन को अमर बनाने 
गुप्त स्थान पर मेरा 
चित्रण हुआ था ।
 
एक सदी के अनंतर  
हलकी सी लकीरों के सिवा 
दीवारों से मैं लुप्त हो गया ; 
नित – नवीन देवों के 
अगणित सनातन संदेश मुझे मिटा 
मुझ पर ही चित्रित हो गये थे 
मृत्यु का महोत्सव मनाने ! 
 
 
हड़प्पाकालीन मैं जहाज़ 
अरबी समुद्र के मार्गों पर 
मेरा आना – जाना ; 
 
एक समय समुद्री तूफान में फंस 
कहीं सुदूर अनजाने पानी में 
खिंचता चला गया । 
 
सर्पाकार समुद्री दानव ने 
गिरफ्त में लिया ; 
आतंकित नाविक 
पानी में कूद पड़े  
कई डूब मरे तो 
कईयों को 
दानव ने हड़प लिया । 
 
दानव मुझे कगार के नीचे की 
कोटर में खींच गया 
सर्पो का क्रीडा स्थल बन गया ।   
 
सदियां बीतीं 
कगार के नीचे 
एक जहाज़ ने लंगर डाला ; 
अचम्बित नाविकों ने देखा 
सर्पों और प्रवालों से वेष्ठित  
जीर्ण जहाज ।        
 
बात फैल गई ; 
भूकंप से स्थल नष्ट हो गया  
परंतु अभी भी मैं भक्तों में 
प्रचलित हूँ 
नील समुद्रनारायण के रूप में 
सर्प पर आरूढ़ 
जो एक श्रीफल के 
नैवेध्य मात्र से ही 
समुद्री आफ़तों से 
नाविकों की रक्षा करता है ।  
 
 
पिरामिड़ के पास  
मैं छेद में रहता था ; 
पूरा समय 
आहार की खोज में ही बिता देता  
कभी ऊपर नहीं देखता    
मेरे नजदीक की दैत्याकार ऊंचाई से 
बेखबर था । 
 
एक प्रातः सक्रिय होते ही 
अचानक ऊपर देखना हुआ ; 
            शिखर पर जगमगाता 
रत्नहार देखा !
अपने जैसे अनगिना बीटलों को
उस हार में प्रवेश करते   
गोल गोल नाच करते देखा ! 
अपने को कैसे रोक सकता था ?
इसलिए पिरामिड़ पर 
चढ़ना शुरू कर दिया ।
 
कभी – कभी गुलामों की कराह  
तो फैरो की धुनी मांगे की झंकार 
सुनाई पड़ती  
और मैं क्षणभर रुक जाता…  ; 
परंतु सब से खतरनाक तो था 
बूढ़े मुल्क के भीतर से 
भूकंप का
मारक हास्य 
जो पिरामिड़ को थरथरा कर 
गायब हो जाता । 
 
किन्तु मैंने तो चढ़ना 
जारी ही रखा  
मुझे तो कैसे भी 
उस थिरकते वृत्त में 
पहुंचना था ;
      आखिरकार शिखर पर 
पहुँच ही गया ।
 
परंतु वहाँ तो प्रकाश का
कोई वृत्त था ही नहीं ! 
जब मैंने नीचे की ओर देखा 
तो ऐसे असंख्य हार 
ठेठ नीचे झिलमिला रहे थे 
कई तो 
मेरे छेद के एकदम करीब ! 
 
मैं उतरना भूल चुका था 
मात्र चढ़ ही सकता था 
इसलिए 
पीछे के पैरों पर खड़े हो कर 
चढ़ने की चेष्टा जारी रखी ;
इतने मे हवा का झोंका 
रेत की आंधी में  
मुझे उठा ले गया   
जो आज तक 
चक्कर काट रहीं हैं – 
परंतु ऐसे अस्थिर चक्र में 
उतरना तो कैसे संभव ?
कभी घर पहुँच सकूँगा       ?
 
*प्राचीन मिस्र में स्केरेब बीटल (गोबरैला) की पूजा होती थी । मिस्रवासिर्यों के लिए तो वह आत्मा , अमरत्व , उषा आदि का प्रतीक था ।  
     
 
 

मरूभूमि

 
मैं वह आवेग था 
जिसने रेत में 
गुलामों और माल के 
एक दूसरे से बढ़कर  
एक दूसरे से भी ज्यादा शानदार 
कितने ही काफ़िलों को 
प्रेरित किया 
जो क्षितिज के खानों में
समाकर बिसर गये ।
 
मेरे प्रोत्साहन से
अन्य मालिकी की  नीचे
पुनः पुनः जीवित हुए   
ध्वज फहराते 
पूँजी का विस्तार करते
       
संस्कृतियों को नए नए सृजन से
उत्तेजित करते
काफिलें ।   
 
 

भावी अस्तित्व

 
तुम्हें भावी अस्तित्वों के बारे में  
जानना हो 
तो किसी बेहतरिन और परिपक्व नभ को ढूंढ लो 
उसे निश्वास , स्मित और आँख मीचकार कर बहलाओं ;
अंत में 
इतनी बुलंद गर्जना करो जो 
दूर से , नजदीक से , अंदर तक 
प्रतिध्वनित होती रहे 
जिससे अवकाश और भावनाओं का 
ऐक्य सिध्द हो ।
 
थोड़ा रूको ताकि 
नभ में गर्भ विकसित हो ;
फिर आकाश को हिला डालो   
तो शायद नीलांबर से 
कुछ अस्तित्व 
नीचे आ गिर पड़े ;
किन्तु ऐसा  
दु:साहस मत करना कि
आकाश ही तुम पर 
धड़ाम से टूट पड़े !

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