शब्दांकुर प्रकाशन

पुस्तक समीक्षा : चल प्राची की ओर

दोहाकार: श्री सुभाष मित्तल ‘सत्यम’

श्री सुभाष मित्तल ‘सत्यम’ का दोहा-संग्रह ‘चल प्राची की ओर’ एक ऐसी पुस्तक है जो भारतीय संस्कृति, जीवन-मूल्यों और सामाजिक चेतना को दोहों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाती है। यह पुस्तक केवल साहित्यिक सृजन नहीं है, बल्कि एक ऐसा जीवन-दर्शन है जिसमें अतीत की महिमा, वर्तमान की चुनौतियाँ और भविष्य की उम्मीदें बड़ी सहजता से प्रतिबिंबित होती हैं। सुभाष मित्तल ‘सत्यम’, जो एक वरिष्ठ शिक्षक, साहित्य साधक और संवेदनशील दोहाकार हैं, ने इस संग्रह में अपने विचारों और अनुभवों को इतनी सरलता और आत्मीयता से प्रस्तुत किया है कि हर पाठक इससे जुड़ाव महसूस करता है। यह समीक्षा इस पुस्तक के हर पहलू को सहज भाषा में समझाने का प्रयास है, ताकि इसे हर कोई दिल से महसूस कर सके।
‘चल प्राची की ओर’ के दोहे जीवन, समाज और संस्कृति का जीवंत चित्र खींचते हैं। इन दोहों में भारतीय परंपराओं की गरिमा, नैतिक मूल्यों की अनिवार्यता, सामाजिक विसंगतियों पर चिंतन और भविष्य के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट झलकता है। संग्रह का शीर्षक ही एक सुंदर प्रतीक है। ‘प्राची’ यानी पूर्व, यानी हमारे सांस्कृतिक मूल, हमारे आदर्श। इस शीर्षक के जरिए कवि ने आने वाली पीढ़ियों को पुकारा है कि वे अपने गौरवमयी अतीत से प्रेरणा लें और उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ें। मिसाल के तौर पर यह प्रेरणादायक दोहा देखिए:
“तम को ‘सत्यम’ चीर कर, होने वाली भोर।
नव सपने मन में सजा, चल प्राची की ओर॥”
यह दोहा केवल आशा का संदेश नहीं देता, बल्कि आत्मबल और सांस्कृतिक चेतना का उद्घोष भी करता है।
इसी तरह, इस संग्रह में समाज में फैल रही बुराइयों, विकृतियों और विसंगतियों पर भी पैनी नजर डाली गई है। उदाहरण के लिए:
“गाँवों में इस देश के, लगा पलायन रोग।
ख़ातिर पापी पेट के, शहर भागते लोग॥”
यह दोहा ग्रामीण पलायन की समस्या को बेहद मार्मिकता से रेखांकित करता है। इस तरह के दोहे केवल यथार्थ चित्रण नहीं करते, बल्कि सोचने को भी मजबूर करते हैं कि विकास की दौड़ में हमने कितनी कीमत चुकाई है।
‘चल प्राची की ओर’ के दोहों में नीति, भक्ति, प्रेम, करुणा, प्रकृति-संवेदन और सामाजिक चेतना के विविध रंग देखने को मिलते हैं। ये दोहे जीवन के यथार्थ को भी सहजता से स्वीकार करते हैं और आदर्शों की महत्ता को भी याद दिलाते हैं। ‘सत्यम’ जी का दृष्टिकोण संतुलित है — वे न अंध परंपरावादी हैं, न अंध आधुनिकतावादी। वे परिवर्तन के समर्थक हैं, लेकिन जड़ों से कटने के खिलाफ हैं। उनका यह दृष्टिकोण दोहों में खूबसूरती से उभरता है, जैसे:
“नहीं विरोधी परस्पर, ज्ञान और विज्ञान।
भौतिक उन्नति दूसरा, प्रथम आत्म-उत्थान॥”
इस तरह के दोहों से स्पष्ट होता है कि ‘सत्यम’ जी की सोच आधुनिकता के साथ संतुलन साधने वाली है, जिसमें संस्कृति और विज्ञान दोनों के प्रति सम्मान है।
इस संग्रह की सबसे बड़ी खूबी इसकी भाषा और शैली है। दोहों की भाषा अत्यंत सहज, प्रवाहमयी और स्वाभाविक है। हर दोहा पाठक के दिल में उतरता है और उसे सोचने पर मजबूर करता है। कहीं भी क्लिष्टता या अनावश्यक जटिलता नहीं है। ‘सत्यम’ जी ने शब्दों का ऐसा सुंदर विन्यास किया है कि हर दोहा अपने आप में एक संपूर्ण विचारधारा का संक्षिप्त सार बन गया है।
‘चल प्राची की ओर’ के दोहे केवल विचारों का संप्रेषण नहीं करते, बल्कि भावनाओं को भी गहराई से स्पर्श करते हैं। उनमें कहीं एक शिक्षक की चेतावनी है, कहीं एक साधक की प्रार्थना, कहीं एक सच्चे नागरिक की चिंता, तो कहीं एक प्रेमी हृदय की कोमलता। संग्रह के कई दोहे आज के समय में बहुत प्रासंगिक लगते हैं — चाहे वह नैतिक मूल्यों के क्षरण की बात हो, पर्यावरण संकट की चिंता हो या परिवारिक विघटन की पीड़ा।
यह पुस्तक पाठक को केवल सोचने पर मजबूर नहीं करती, बल्कि उसे एक दिशा भी देती है — अपने मूल्यों की ओर लौटने की दिशा। इन दोहों में एक गहरी उदासी भी है और एक प्रबल आशा भी। यह संतुलन ही ‘चल प्राची की ओर’ को एक अलग ऊँचाई प्रदान करता है।
‘चल प्राची की ओर’ का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी सच्चाई और आत्मीयता है। यह संग्रह बड़े-बड़े नारों से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे सच्चे अनुभवों और संवेदनाओं से बना है। हर दोहा जैसे पाठक के दिल पर दस्तक देता है और उसे अपने जीवन की ओर, अपने भीतर की ओर लौटने के लिए प्रेरित करता है।
श्री सुभाष मित्तल ‘सत्यम’ ने इस संग्रह के माध्यम से दोहा-साहित्य की समृद्ध परंपरा में एक सुंदर और सार्थक योगदान दिया है। उनके दोहे कबीर, रहीम, तुलसी और बिहारी जैसी महान परंपरा के सच्चे अनुयायी प्रतीत होते हैं, लेकिन उनके स्वर में आज के समय की चिंता और आज के समाज का यथार्थ भी साफ-साफ सुनाई देता है।
‘चल प्राची की ओर’ एक ऐसी पुस्तक है जो हर उस पाठक के लिए जरूरी है जो साहित्य के जरिए जीवन को बेहतर ढंग से समझना चाहता है। श्री सुभाष मित्तल ‘सत्यम’ को इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ और शब्दांकुर प्रकाशन को साधुवाद, जिन्होंने इसे इतने अच्छे रूप में प्रस्तुत किया।
अंत में यही कहा जा सकता है कि ‘चल प्राची की ओर’ केवल एक दोहा-संग्रह नहीं, बल्कि एक दिशा-सूचक दीप है जो हमें अपने उज्ज्वल अतीत से प्रेरणा लेकर एक सुंदर भविष्य की ओर बढ़ने का रास्ता दिखाता है। यह संग्रह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर बनकर रहेगा।

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