शब्दांकुर प्रकाशन

sabhachand subhash

सुभाष रचनावलि

संक्षिप्त परिचय

सभाचंद ‘सुभाष’ जी के शहीद श्री गहाड़ सिंह और माता श्रीमती मनभा देवी जी हैं। उनका जन्म 09 जनवरी को हुआ था। वे आशुलिपि लेखक(हिंदी) एवं प्राध्यापक (अंग्रेजी), शिक्षा विभाग, हरियाणा से सेवा निवृत्त हो चुके हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में प्रथम पाठशाला, कमलेश-कुंज, आशा के मोती, प्रेम पथिक, माता-दर्शन, नाच रहा है मोर, कर्म फल, अहीरवाटी दोहा सतसई, निर्मल भाग्य, Hope Against Hope हैं। उन्हें अनेक संस्थाओं से विभिन्न साहित्यिक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इस ब्लॉग में आप उनकी कुछ प्रतिनिधि रचनाओं का आनंद ले सकते हैं- 

लेखन

हिंदी है आधार हिंद की
हिंदी से हिंदुस्तान खड़ा
है हिंदी संचार हिंद की
इस हेतु हिंदुस्तान बड़ा

मनप्यारी, दिलप्यारी भाषा
है हिंदी शान हमारी
लगते चार चाँद जीवन को
हिंदी है जान हमारी

सुन सुन हिंदी शैशव चहका
हिंदी में बचपन खेला
महकाती चहकाती यौवन
हिंदी से लगता मेला

हिंदी है पर्वत अटल अडिग
हिंदी है गंगा पानी
हिंदी है सागर-सी गहरी
हिंदी है अमृत वाणी

अहीरवाल भूमि पर हिंदी
मन अपने खूब मचलती
हिंदी भाषा दिलकश इतनी
जनता के मुख ये खिलती

हम भारतवासी हिंदी का
दिल से आदर करते हैं
माँ सरस्वती के पूजक हम
हिंदी से दम भरते हैं


कान्हा, तेरी बंसी की धुन
बड़ी रसीली है न्यारी
मीठी मीठी धुन सुनने को
देखो, आवैं नर-नारी

नत मस्तक हैं तेरे आगे
कदंब की डाली डाली
हिल हिल चमक मारती चमकैं
गोकुल बाला की बाली
कितनी उत्सुक हैं ये गायें
संग संग बछियां सारी

उपवन नाचै मोर सुहाना
हिरणी की आँखें देखो
प्यारी-सी तेरी नगरी के
ये छोरे बाँके देखो
राधा, रुक्मण दोनों देखो
हिचकोले लावैं लारी

महल झरोखे झांक रहे सब
ड्योढियां ये झुकी हुयीं
घुमंतू बंजारों के संग
ये बंजारिन रुकी हुयीं
कलियाँ ये सारी जाग उठीं
जो महके क्यारी क्यारी

हुयी शांत यमुना की धारा
जल-चर ने लाया डेरा
धरा रेंगते पेट पलनिया
रोक दिया अपना फेरा
‘चंद’ पखेरू डाल डाल पर
हैं बैठी चिड़ियाँ प्यारी

कान्हा, तेरी बंसी की धुन
बड़ी रसीली है न्यारी
मीठी मीठी धुन सुनने को
देखो, आवैं नर-नारी


जिस दिल भाव नदारद हों
वह पत्थर है, दिलदार नहीं
वो दिल भी तो क्या दिल है
जिसे देश के प्रति प्यार नहीं

जो देश-धर्म निभा ना सका
वो भारत का लाल नहीं
कर न सका जो मेल दिलों से
वो जन तो खुशहाल नहीं

सब प्यारे नाते तोड़ दिये
वह प्रेमी क्या कहलाया
जहर द्वेष का घोल दिया मन
वह मानस क्या महकाया

जो हुआ नहीं है भारत का
वह मन तो गुलज़ार नहीं
वो दिल भी तो क्या दिल है
जिसे देश के प्रति प्यार नहीं

जिसकी माटी में जन्म लिया
जिसकी गोदी में खेला
जहाँ सजा हो जीवन की उन
दिलकश यादों का मेला

जिसने पुरुषोत्तम राम दिया
मान किया मर्यादा का
द्वापर में कान्हा श्याम हुये
दुख जो हरा सुदामा का

नफरत का धन बिरथा है
नफरत का कोई सार नहीं
वो दिल भी तो क्या दिल है
जिसे देश के प्रति प्यार नहीं

बात शर्म से सनी घनी जो
मानवता के दुश्मन हैं
छि:छि: है उनके कर्मों को
मन जिनके ना अपनापन है

बेखबर हैं वे मालिक से
बदन माटी मिल जाना है
काल-चक्र चलता नित है
घूम घूम फिर आना है

सबसे पहले देश हमारा
द्वेष नहीं, तकरार नहीं
वो दिल भी तो क्या दिल है
जिसे देश के प्रति प्यार नहीं
जिस दिल भाव नदारद हों
वह पत्थर है दिलदार नहीं

 

अजब आशियाना चिड़िया ने
अपना एक बनाया
उठा चोंच में कण कण माटी
ला छत से चिपकाया

पास बैठते नित दो प्रेमी
चर्चा उसकी करते
दिली सुहानी वह जो लगती
बोल प्रेम के झरते

तप्त दुपहरी बैठा करती
चिड़िया उस माटी-घर
सुन सुन बातें उन दोनों के
होती खुश जी भर भर

नजर मिलाते नन्ही चिड़िया
कुछ कुछ बोला करती
देख देख कर उन दोनों के
मन को तोला करती

दूर अगर होते वे दोनों
उड़ उड़ उन्हें बुलाती
पाकर पास उन्हें फिर चिड़िया
दिल से खुशी मनाती

दिन दिन प्यार बढ़ा चिड़िया से
मन मिलता चला गया
प्याला-सा शीतलघर था उस
प्रेमी का नया नया

अजब गजब लीला मालिक की
उन को साथ मिलाया
कर कर दिल की दिल से बातें
मन का बाग खिलाया

कौन, कहाँ, कब मिलते प्रेमी
मिलते हैं दिल कैसे
यह जीवन है पल दो पल का
रहो प्रेम से ऐसे


करे दूर शक शंकाएं सब
गुरुवर ही बतलाया
कर उजियारा ज्ञान-दीप से
गुरु ने ब्रह्म घुमाया

ज्ञान ध्यान भंडार भरे गुरु
सत्य का पाठ पढ़ा दे
कर पथ-दर्शन शिष्य अपने का
गुरु जो शिखर चढ़ा दे
मन की पीड़ा सभी मिटा दे
गुरु की शीतल छाया

भरे तेज निस्तेज दिलों में
गुरु की अमृत वाणी
करे पार जीवन नैया को
फंसा भंवर जो प्राणी
बात बता हल करे समस्या
गुरु की अद्भुत माया

मोह, लोभ, ममता, माया से
गुरुवर दे छुटकारा
गुरु के चरणों में होता है
सच में, ज्ञान पिटारा
आशीर्वचनों से जग सारा
गुरुवर ने महकाया

अलस हटा दे तन-मन चिपकी
गुरु की नजर सुहानी
मंच चढ़ा दे थपकी उनकी
बोली मधुर जुबानी
स्वर सुभाषी, शरण सुधा-सी
रहा, वही कुछ पाया

 


चल उड़ पंछी ले खोल पंख
नाप अभी तू भूमंडल
शीश झुका क्यों बैठा है, रे
दिखा जगत अपना तन-बल

मन से चिपकी हटा अलस को
रच दे अब इतिहास नया
देख गगन की ओर अभी तू
छोटा सा उड़ रहा बया

छोड़ो शाखा को पंजों से
ना जाने दे ये दो पल
चलो चीर कर हवा हठीली
अभी मचा दे नभ हलचल

उड़ता देखे मालिक तुझ को
होगा फिर तेरा सम्मान
करे प्रशंसा इतनी तेरी
देवें देव देवी ध्यान

दिखला दे ताकत फिर से, हाँ
दिनकर जो छुपने को है
देर न कर, कर ध्यान अभी तू
तरुवर भी झुकने को है

कहीं अंधेरा हो ना जाए
भर ले तुरत उड़ान गगन
तेरा साथी गया कभी का
करे प्रतीक्षा सुंदर वन

 


महकता फूल क्या टूटा, तने की शान गायब है
सिसकता भाल डाली का, चमन से जान गायब है

मचलता सूंघता भ्रमर, लगाता रोज था चक्कर
नजर से दूर थीं कलियाँ, भली पहचान गायब है

पड़ी जब थी किरण दिनकर, उदासी मन चढ़ी आयी
किरण जो हो गई बेदम, सुमन अभिमान गायब है

धरा को चूमने में लीन वो भोला भला तब था
मिला भू प्यार ममता का, तना सौपान गायब है

चली है लेखनी कहती सुभाषी फूल की व्यथा
मिलन जो हो गया मालिक, मधुर सहगान गायब है

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