काव्य संग्रह : निर्मला जोशी ‘निर्मल’
समीक्षाकार : राजेंद्र पंत राजन
साहित्य जीवन की अभव्यक्ति है। साहित्य समाज की ऐसी अंतर्धारा है जो साहित्य को चित्तपटल पर शब्दों के मुखर भावों को विविध रूपों में डालकर कालजयी बना देते हैं। साहित्य सर्जना में अंतःकरण से शब्दों का समायोजन विभिन्न शब्दों के मुखर भावों से अर्जित किया गया रचनामय लेखन किसी के भी अंतः मन को स्पर्श करने की क्षमता रखता है। जनहित की भावना लिखा गया साहित्य हमेशा आलोचको के मापदंड पर खरा उतरता है जिसमे भावों का गद्यात्मक और पद्यात्मक रुप देखने को मिलता है।
यही भाव महान रचनाकार निर्मला जोशी ‘निर्मल’ जी के काव्य संग्रह ‘निर्मल नीर’ में देखने को मिलता है। निर्मला जी की रचनात्मक भाषा शैली बहुआयामी विचारों की सरल सरस अभव्यक्ति है। जो भारतीय संस्कृति को उजगर करती है। उनकी रचनाओं में मातृभाषा हिंदी के प्रति विशेष प्रेम झलकता दिखाई देता है-
हिंदी भारत का मान है
हिंदी भारत की शान है
अभिमान है
पहचान है
सम्मान है
श्रंगार रस में रचे इनके काव्यगत भाव अलग ही छाप छोड़ते हैं-
श्रंगारित फिर आज धरा है
दुल्हन सी सज आई है
नव कोपल नव पात लिए
ऋतु बसंत की आई है
रस, छंद, अलंकारों से ओत प्रोत निर्मला जी का काव्य संग्रह काव्य जगत के क्षेत्र में एक अतुलनीय पहचान है। रचनाकार, साहित्यकार या व्यंगकार अपने लिए नहीं लिखता है। वह सिर्फ कवित्त भावों को महसूस करके अंतः मन के भावों को सृजन कर समाज के लिए परोस देता है ।