शब्दांकुर प्रकाशन

srijanhar ka uphaar

पुस्तक समीक्षा : सृजनहार का उपहार

लेखक : ऋषिपुत्र सूबे सिंह सत्यदर्शी
समीक्षाकार : ब्रिगेडियर राजाराम यादव

ऋषिपुत्र सूबेसिंह सत्यदर्शी ने मनुष्य जीवन के वास्तविक उद्धेश्य और रचयिता की श्रेष्ठ मंशा को स्पष्ट करके अपनी नई पुस्तक “सृजनहार का उपहार” का विमोचन किया है।
प्रसिद्ध लेखक, सत्यदर्शी की पुस्तक पृथ्वी पर के जीवन के उद्धेश्य और भविष्य के सुंदर चित्रण के साथ ब्रह्मांड के सृजन के पीछे सृजनहार की मंशा क्या है ? इस तथ्य से अवगत कराती है।
लेखक वैज्ञानिक, व्यावहारिक, शास्त्र सम्मत और सार्वभौमिक नियमों की कसौटियों पर अपनी बात को परख कर प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है।
लोक – परलोक में व्यक्ति का जीवन सुखी, सम्पन्न, समृद्ध और सफल कैसे हो सकता है ? इन विषयों को सत्यदर्शी जी ने अपनी रचना में बड़ी सरलता से वर्णन किया हैं ।
लेखक अपनी लंबी खोज और अपनी आध्यात्मिक यात्रा के अनुभवों से प्राप्त अनुभूति को अपने पूरे दिल से साझा करना चाहता है।
वर्तमान में हर किसी के पास सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं, फिर भी उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए ताकि जीव के कल्याण के लिए अपना श्रेष्ठ, सर्वोत्तम और यथायोग्य योगदान दिया जा सके।
परंपराओं और आवश्यकताओं के मध्य संतुलन बनाकर चीजों को संज्ञान लेना चाहिए।
अपनी अनुभूति में लेखक लीक से हटकर कुछ बातों पर प्रकाश डालता है।
अद्वैत से आरम्भ करके, गुणी वस्तु अपने गुणों द्वारा जानी जाती है तक अपने पाठकों को ले जाता है।

सृष्टि है तो सृष्टिकर्त्ता भी है इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए वह सृष्टि में उपस्थित जीवन और नियमों दोनों को कवच बनाता है क्योंकि जहाँ नियम होते हैं वहाँ नियंता और उद्धेश्य दोनों सुनिश्चित रहते हैं।
अब जीवन का उद्धेश्य और नियंता की मंशा क्या है ? यह स्पष्ट करने के लिए तो “सृजनहार का उपहार” पूरी की पूरी पुस्तक लिखी गई है।

  1. स्वर्ग – नरक कही और नहीं पृथ्वी पर ही हैं ।
  2. परमपिता परमात्मा सर्वव्यापक नहीं सर्वोपस्थित है।
  3. मोक्ष में आत्मा का किसी में विलय नहीं बल्कि प्रत्येक आत्मा का सदैव अपना एक स्तन्तत्र अस्तित्व बना रहता है।
  4. लख – चौ + राशी की व्याख्या अलग ढंग से की है लेखक दावा करता है कि मोक्ष की प्राप्ति तक मनुष्य, मनुष्य योनी में ही जन्म लेता रहता है।
  5. न ही कण – कण में परमात्मा है और न ही प्रत्येक जीव में आत्मा है।
  6. पृथ्वी पर हम पूर्णता की प्रक्रिया से प्रसार होने के लिए भेजे गए हैं पूर्णता की प्राप्ति के पश्चात हम परमधाम में सृजनहार के साथ सृजन का कार्य करेंगे। पृथ्वी पर कार्य परिश्रम से और परमधाम में कार्य संकल्प से पूर्ण होते हैं।
  7. हम सब ब्रह्मा हैं पूर्णता की प्राप्ति के बाद सबका अपना – अपना ब्रहमाण्ड होगा। “One Person Own Planet” का दर्शन स्पष्ट किया है।
  8. चीजों का सदुपयोग पुण्य है और दुरुपयोग पाप है।
  9. देवी – देवताओं की प्रतिमाएँ एक विज्ञान है एक संदेश एवं एक दर्शन भी है।
  10. नर से नारायण वाली कहावत 100% सच है।

लेखक बताता है कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रचयिता के द्वारा भी दो विरोधी प्रकृतियों को एक साथ लाया गया हैं। वर्तमान में हम दो भौतिक और आध्यात्मिक प्रकृतियों के आपसी सहयोग से ही पृथ्वी पर जीवन जी रहे हैं। यही संघर्ष का कारण है। संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए रचयिता की मंशा और अपनी आत्मा के अंतिम चाहत को समझकर कर्म करने की आवश्यकता है।
सच्चाई के प्रति समर्पित और शंकाओं के समाधान के लिए संवाद के समर्थक होने के नाते, उन्होंने कहा पृथ्वी के ऊपर और आकाश के नीचे एक कार्य को होने अर्थात पूर्ण करने के लिए, एक कारण, एक समय, एक साधन और एक सिद्धांत सुनिश्चित है। सही समय पर, सही साधन के साथ, सही सिद्धांत का सही – सही प्रयोग ही निर्धारित परिणाम प्रदान करता है।
आगे लोगों के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा संसार में लोगों की दो प्रकार की वृति भोगवादी एवं मोक्षवादी हैं और वे अपने – अपने कर्मानुसार आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा मुमुक्षु की श्रेणियों में बट गए हैं।

अर्थार्थी लोगों द्वारा छेड़ी गई नाक, मूंछ और पगड़ी की झूठी, भ्रमित लड़ाई में आम लोग फंस गए हैं। हमें उनकी समझ से नहीं बल्कि अपनी समझ से अपना भविष्य बनाना चाहिए। गलती सुधारें, वर्तमान में जिएं और भविष्य को कभी न भूलें।

पुस्तक के लेखक का एक अद्भुत व्यक्तित्व है उसने अगम परिश्रम अनम्य त्याग, कठिन तपस्या के बल से प्राप्त प्रभु कृपा को इस तरह से प्रस्तुत किया है कि रचयिता वास्तव में क्या चाहता है ?
उन्होंने ने कहा कि रचयिता चाहता है ज़िन्दगी एक उत्सव बने और उसमें उसकी सृष्टि हरपल आनन्द करें।
“सृजनहार का उपहार” पुस्तक जीवन की वास्तविक सच्चाई प्रकट ही नहीं करती बल्कि पूर्णता के सरल उपाय भी बताती है । अब यह कृति अमेज़ॅन पर उपलब्ध है।

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