लेखिका : पुष्पा मेहरा
समीक्षाकार – शशि पुरवार
तिनका-तिनका पुष्पा मेहरा जी का पहला दोहा संग्रह है। 10 जून 1941 को जन्मी श्रीमती पुष्पा मेहरा ने उम्र के ऐसे पड़ाव पर आकर लेखन शुरू किया जब लोग स्वयं को वैरागी समझने लगते हैं। उन्होंने न केवल साहित्यिक विधाओं को साधा अपितु साहित्य को समृद्ध किया है। उनका हाइकु संग्रह भी मैंने पढ़ा है वे विचारों व कलम की धनी है। तिनका-तिनका जोड़ कर उन्होंने अपना वृहद साहित्यिक रचना संसार तैयार किया है।
दोहा हिंदी साहित्य की प्राचीन व प्रचलित विधा है जो कभी लुप्त नहीं हुई। दोहा दो पंक्तियों में लिखा जाने वाला मात्रिक छंद है। दोहे आज भी लिखे जा रहे हैं किंतु वर्तमान समय में लोगों द्वारा सपाट बयानी भी की जा रही है दोहे मैं लयात्मकता व शिल्प उसका श्रृंगार हैं।
कवयित्री ने वैचारिक मूल्य, समसामयिक चित्रण विसंगतियाँ व प्रकृति पर सूक्ष्म अध्ययन करके सुंदर ढंग से उसे प्रेषित किया है। एक रचनाकार की संवेदना की सफलता यही है कि पुस्तक पढ़ने के बाद उसे एक साँस में समाप्त किया जाए। दोहे में तिनका-तिनका संग्रह की शुरुआत पुष्पा जी ने माँ शारदे की वंदना के साथ की है। उन्होने कर्म को सर्वोपरि मानकर कहा है-
बड़ा ना कोई कर्म से, इस जगती में धर्म।
मानवता रक्षार्थ हित, करूं सदा सत्कर्म।।
कवयित्री ने शब्दों को अनमोल कहते हुए लिखा है-
आखर आखर कर जोड़ के, शब्द लिखे हिय लाय।
शब्द-शब्द संगत जुड़े, लिखा न मिटने पाय।
भेद सभी के खोलते, शब्द बड़े अनमोल।
मुख में आते शब्द को, सोच समझ कर बोल।।
शब्दों को बोलने से पहले हमेशा सोच लेना चाहिए। वहीं उन्होने राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति भी अपनी चिंता व्यक्त की है। साथ ही वह नारी के अधिकारों को सजग करते हुये नारी की आवाज बनी है उसका एक उदाहरण देखिए-
नारी जग की नींव है, नारी नर का सार।
झुकी कमर से ढो रही, रिश्तों का संसार।।
दूसरा
नारी फूल समान है, नारी है पाषाण।
नारी जीवन डोर सी, बने जगत की शान।।
बेटी खुशबू बन बसे, जोड़े दो घर बार।
नवयुग की खिलती कली, ने चाहे अधिकार।।
कम शब्दों में उन्होंने कितनी बड़ी बात कह दी है कि नारी का सम्मान करिए, नारी जितनी कोमल है उतनी पाषाण भी है, कितनी सहजता से अपनी बात सामने रखी है कि नारी ने ही जग की नींव रखी है और उसके बाद भी वह रिश्तों का बोझ अकेले ढो रही है, वह सम्मान की हकदार है, उसे उसके अधिकार मिलने चाहिए। उन्होंने बेटियों के लिए भी कहा है –
बेटी को और क्या चाहिए? बेटी अपने अधिकार ही चाहती है। जहाँ पर बेटी होती है जहाँ की वह बहू बनती है। वहाँ उसे मिले अधिकार ही उसे विस्तार देते हैं। नारी के विभिन्न रूपों को अभिव्यक्त करने के बाद जीवन में पानी और जल का महत्व बताया है। मधुमास, जीवन और पानी पर सहजता से आपकी कलम चली है। जहाँ निम्न दोहे में पंचतत्व में जल का बेहद सुंदर चित्रण व उसके प्रति जग की चिंता व्यक्त की गई है –
पंच तत्वों में एक है, जल जीवन आधार।
जल बिन यह जग खोजता, प्राण तत्व का सार।।
वहीं मधुमास का बेहतरीन सुंदर चित्रण किया है-
शाख-शाख उन्मत्त है, हवा रचाती छंद।
आम्र डाल पर कोकिला, रचे प्रेम के बंद।।
हँस-हँस सूरज फेंकता, सप्तरंग के डोल।
पंच स्वर में कोकिला, रही प्रेम रस घोल।।
प्रकृति से कवयित्री का बहुत जुड़ाव है और वह उसमें खूबसूरत बिंब देने में सफल होती हैं इसी प्रकार उन्होंने ग्रीष्म का वर्णन किया है देखिए उनका दोहा-
दूसरा उदाहरण
मौसम के हाथों बिकी, हवा मचाती शोर।
धूप तपी, छिप के भगी, चाहे शीतल भोर।।
मौसम से कर दोस्ती, धूप बदलती रूप।
बाँध रेत निज आँचरा, नदी पछोरे धूप।।
इसी तरह उन्होंने वर्षा ऋतु का एक सुंदर चित्रण किया है-
झरी बूँद बदली खुली, किरणें झाँकीं मंद।
छलकी गाकर प्रेम की, चमके बाजूबंद।।
शीत ऋतु देखिए कि –
कंगन पहने ओस का, बिछी पड़ी थी दूब।
प्रात भ्रमण के दर्प ने, रौंदा उसको खूब।।
कम शब्दों में कितना कुछ कह दिया है। इसके बाद उन्होंने विभिन्न में विविधायन में बेहतरीन दोहे लिखे हैं-
तिनका-तिनका जोड़कर, चिड़िया रचती नीड़।
पत्थर दिल ये आंधियां, तोड़ बढ़ाती पीड़।।
सुंदर शब्दों में उन्होंने जीवन का चित्रण खूबसूरती से संप्रेषित किया है, इसी तरह उन्होंने आज के संघर्ष को शब्द दिए हैं कि-
संघर्षों ने दे दिए, मन को सौ आघात।
दुख बदरी ना थम सकी, रोई सारी रात।।
इसका अगला दोहा है कि-
दिल के छाले थे छिले, उठी जलन भरपूर।
चंदन वन का देश ये, शीतलता से दूर।।
कितनी गहन बात व पीर को उकेर दिया है। इसी तरह जीवन बहुत छोटा है उसको जीना चाहिए की सीख दी है, उन्होंने लिखा है-
आओ दो पल बैठकर, करें प्यार की बात।
जाने कब आकर मिले, इस जीवन की रात।।
अब अन्य दोहा “नदिया लेकर जा रही, अपने मन का नेह; त्याग समर्पण भाव से, भरने सागर गेह” में फिर जीवन को कितना खूबसूरत उन्होंने चित्रित किया है कि “जीवन में जलता रहे, विश्वासों का दीप; करुणा ममता प्रेम से, भर जाए मन द्वीप” अंत में यही कहना चाहूँगी कि कवयित्री द्वारा रचित दोहा संग्रह ‘तिनका-तिनका’ एक समृद्ध दोहा संग्रह है जिसमें विभिन्न विधाओं को समेटे हुए इंद्रधनुषी रंग बिखरे पड़े हैं। शिल्प की दृष्टि से वे पूर्णतया सफल हुई हैं हालाँकि कुछ दोहे परिमार्जन चाहते हैं परंतु उनकी कृति पाठकों को बहुत पसंद आएगी। मैं उन्हें लंबे वक्त से जानती हूँ वे जिस पीड़ा से गुज़र रही हैं उससे मैं भी गुज़र रही हूँ। उसके बावजूद उन्होंने अपने द्वारा साहित्य में बेहद योगदान दिया है और वे सफल समृद्ध रचनाकार हैं। उनकी लेखनी समृद्ध है कि उन्होंने इस उम्र में भी विधाओं को आत्मसात करके साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मेरी अशेष हार्दिक शुभकामनाएँ सदैव उनके साथ हैं |