संक्षिप्त परिचय
विकास अरोरा एक लेखक, कवि और एक ऑप्टिशन हैं। वे फरीदाबाद, हरियाणा के रहने वाले हैं। उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है। वे व्यंग्यात्मक कवितायेँ लिखते हैं। इस ब्लॉग में आप उनकी कुछ प्रतिनिधि रचनाओं का आनंद ले सकते हैं-
लेखन
ये हवायें भी ना जाने
कितनो का दर्द लिए बहती है!
करती है सायें सायें
भले ही
पर दर्द किसी का नही कहती है!
मेरे कमरे को
आज सजाऊँगा मै!
कहीं किताबें तो कही
कलमे रख जाऊँगा मै!
स्याही की खूश्बू से
कमरे को मेरे महकाऊँगा मै!
बिखरे पन्नों की बना चादर
बिस्तर को सजाऊँगा मै!
लिखकर कुछ गजले मौन दीवारो पर
आवाज़ उन्हें दे जाऊँगा मै!
मेरे कमरे को आज सजाऊँगा मै!
कलम को उठाया ही था
स्याही में डूबाया ही था!
ना जाने क्यू
डर रहे थे वो लोग
गुनाह जिनके
अभी लिख पाया ही नही था!
बहुत क़िस्मत वाले होते है
वो लोग
जिनकी क़िस्मत में
ये हसीं पल आया था!
बनाने वाले ने भी
क्या खूबसूरत रिश्ता बनाया था!
दो आत्माओं को मिलाने को
पाणिग्रहण करवाया था!
वक्त रुक गया था
कुछ घड़ी के लिए
जब मेरी हथेली पे
उसका वो कोमल हाथ आया था!
बस उसी अग्नि को मान साक्षी
आँखों ही आँखों में
उसे ये विश्वास दिलाया था!
ना छूटेगा अब ये हाथ
जो हाथों में आया था!
मन मन से
बात करते थे कभी
अब मन में कुछ और
ज़ुबां पे कुछ का
दौर आया है!
यही दस्तूर बना दुनिया का
अब यही सबने अपनाया है!
ज़ुबां झूठी होती थी कभी
अब मन भी झूठा कहलाया है!
मन की बात रह जाएगी अब मन में
दौर कलियुग का जो आया है!
कतरा कतरा लहू बहा कर
जो पौधा अपने आँगन में था सींचा,
आज वो बड़ा हो गया
सोचा था लूँगा अब
छाँव इसकी,
पर कटा कर जड़े
अपनी वो
किसी ओर आँगन में
खड़ा हो गया।
उजाड़ दिया एक पल में
वो आशियाना
ना जाने कितने बरस लगे होगे
उसे बनाने में!
मुड़ कर
देखा भी ना एक बार
उन हवाओ ने
कि कितने जज़्बात
बिखर गए उनके
गुजर जाने में!
Brilliant work