जन्म तिथि – 10 अक्टूबर 1967
जन्म स्थान – रतनाग, पलामू (झारखंड)
शिक्षा – स्नातक
अभिरुचि – लेखन एवं गायन
परिचय
प्रारंभिक शिक्षा एक छोटे से गांव से प्राम्भ होकर एक छोटे शहर तक पहुँची। बचपन से ही इन्हें कला, संस्कृति से लगाव था, गायन एवं ग्रामीण मंचो पर अभिनय करके लोगों के चहेते बन गए थे। ब्राह्मण उच्च विद्यालय डालटनगंज से दसवीं एवं गणेश लाल अग्रवाल महाविद्यालय डालटनगंज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त करके विनय जी रोजी रोटी की तलाश में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर प्रस्थान किये तथा आजादपुर फल मंडी में फलों का व्यापार प्रारम्भ कर दिया। इसी दौरान इनका विवाह शोभा पांडेय जो आगे चलकर शोभा शुक्ल बनी से हुआ।
चूँकि कला, संस्कृति से लगाव अटूट रहा तो कवि सम्मेलनों को सुनना विशेषकर वीर रस की कविताएं इन्हें बहुत पसंद थी, अतः इसी क्रम में ओजस्वी कवि श्री देवेश तिवारी देवेश का सानिध्य इन्हें प्राप्त हुआ, जो इनके काव्य गुरु बन गए और विनम्र उपनाम प्रदान करते हुए विनय कुमार शुक्ल को विनय विनम्र बना दिया। गुरु कृपा से विनय विनम्र का कवि रूप में जन्म मंच पर हुआ। इस दौरान इन्हें ज्योत्सना, जागृति दो पुत्रियां एवं दिव्यांशु पुत्र के रूप में प्राप्त हुए।
गुरु कृपा से विनय जी निरंतर काव्य सृजन के छेत्र में आगे बढ़ते रहे तथा लाल किला समेत राष्ट्र के अनेक प्रतिष्ठित मंचो, टीवी चैनलों, समाचार चैनलों आकाशवाणी, दूरदर्शन से अनवरत काव्य पाठ कर रहें हैं तथा कई सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं।
प्रकाशित पुस्तकें

मानस के गीत
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लेखन
बढ़ा भूमि का भार तुम्हें कुछ कर दिखलाना होगा
हे तुलसी के राम तुम्हें कलयुग में आना होगा
गंगा यमुना सरस्वती सरयू की पावन धारा
देख मनोरम दृश्य मनुज तन यहाँ आपने धारा
लुप्त हुआ सद्भाव ज्ञान की गंग बहाना होगा
हे तुलसी के राम तुम्हें कलयुग में आना होगा
एक दशानन के कारण चौदह वर्षों वन झेला
आज यहाँ हर चौराहे पे दशाननों का मेला
धर्म ध्वजा फहराने का संकल्प निभाना होगा
हे तुलसी के राम तुम्हें कलयुग में आना होगा
अत्याचारों के चंगुल फंसी है भारत माता
माता का दुःख दर्द प्रभु अब हमसे सहा न जाता
अनुनय विनय विनम्र धनुष पे वाण चढ़ाना होगा
हे तुलसी के राम तुम्हें कलयुग में आना होगा
भारत माँ की गौरव गाथा गाकर तुम्हें सुनाते हैं
अमर शहीदों के चरणों में श्रद्धा सुमन चढाते हैं
गंगा यमुना सरस्वती सरयू की पावन धारा है
कावेरीनर्मदाके तट से साधू संत का नारा है
राम रहीम महावीर बुद्ध नानक ने हमें संवारा है
वंदन करता बार बार चरणों में नमन हमारा है
धर्म की रक्षा करने को जो राज छोड़ वन जाते हैं
अमर शहीदों के चरणों में श्रद्धा सुमन चढाते हैं
सूरदास रसखान कबीरा तानसेन फनकारों की
वीर शिवाजी की रजपूती शान और टंकारों की
बोष की उन उद्घोषों की आज़ाद भगत हुँकारों की
हँसकर फांसी झूल गए जय बोलो माँ के तारों की
उन्ही की शेष बचे सपनों की फिर से याद दिलाते हैं
अमर शहीदों के चरणों में श्रद्धा सुमन चढाते हैं
नहीं चाहते इस दुनिया में अपना राज जमाना
नहीं चाहते औरों की मुंह की रोटी खा जाना
नहीं चाहते सत्य के पथ पर चलकर के पछताना
नहीं चाहते शत्रु को हम रण में पीठ दिखाना
सत्य न्याय के लिए सदा हम अपना रक्त बहाते हैं
अमर शहीदों के चरणों में श्रद्धा सुमन चढाते हैं
राष्ट्र प्रेम की अमर ज्योति को घर घर आज जलाएंगे
देश के हित में चना चबेना घास की रोटी खायेंगे
परोपकार हित पिया गरल यह गौरव गान सुनायेंगे
मीर जाफरों जयचंदों को यम का ग्रास बनायेंगे
अपने भुज के ही प्रताप से ध्वज का मान बढ़ाते हैं
अमर शहीदों के चरणों में श्रद्धा सुमन चढाते हैं
शत्रु के नापाक इरादे सफल न होने पायेंगे
छल से तू हमला करता हम सन्मुख मार गिराएंगे
मांग सके तो क्षमा मांग ले वरना सब पछतायेंगे
वीर बाँकुरे निकल पड़े तो गाड़ तिरंगा आयेंगे
हमसे ना टकराना हम लोहे के चने चबाते हैं
अमर शहीदों के चरणों में श्रद्धा सुमन चढाते हैं
आशा के फूल खिलें कलियाँ विस्वास की
नेह से महक उठीं बाग सांस सांस की
कष्टों का अंत हो गया जीवन बसंत हो गया
सरसों की फूल जैसी साड़ी संवार के
मन के मंदिर में तुझे पूजा सम्हार के
मन मठ महंत हो गया जीवन बसंत हो गया
आम जैसा बौर लिए लेती अंगड़ाई
पिक बैनी साज छेड़े बजती शहनाई
राग मन गढ़ंत हो गया जीवन बसंत हो गया
आपकी उपस्थिति का ऐसा आभास है
देखकर सिन्धु निकट बढती ज्यों प्यास है
शांत भाव संत हो गया जीवन बसंत हो गया
खंजन दृगों में रेख अंजन की डाल के
टेशू उरोज लिए चलना सम्हाल के
कंत विनय वंत हो गया जीवन बसंत हो गया
कामना अधूरी है भावना न भटकाओ
गीत कोई लिखना है आंसुओं ठहर जाओ
सोच नहीं पाता हूँ है उदास अंतर्मन
वेदना मचलती हैं क्यों हुआ करुण क्रंदन
साँझ है तो भोर की भी किरण कोई आएगी
सांस सांस आस मिलन की सुना रही धड़कन
दूर चलेंगे कहीं पे कल्पना संवर जाओ
गीत कोई लिखना है आंसुओं ठहर जाओ
पात पात ले प्रभात आया मधुमास का
उगने लगा है उर में सूरज विस्वास का
महकीं दिशाएं मन के मोर नाचने लगे
शीत गया बीत फूला पादप पलाश का
प्रीति के प्रतीति के ही छंद हर पहर गाओ
गीत कोई लिखना है आंसुओं ठहर जाओ
रुनझुन रुनझुन सी धुन घुल रही हवावों में
चाहता बिछादुं नैन पंखुडियां राहों में
आइये विनम्र मेरा धैर्य डोलने लगा
प्रियतमे बिठालूं तुझे पलकों की छांवों में
अंग अंग में अनंग और प्रिय न शरमावो
गीत कोई लिखना है आंसुओं ठहर जाओ
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बहुत सुंदर